दुश्चिंता
व्यग्रता विकार या घबराहट-एंग्ज़ायटी, एक प्रकार का मनोरोग है।
साधारण शब्दों में चिंता या घबराहट आने वाले समय में कुछ बुरा या खराब घटने की आशंका होना है जबकि इनका कोई वास्तविक आधार नहीं होता। थोड़ी-बहुत चिन्ता सभी को होती है और यह हमारे लक्ष्य की प्राप्ति या सफलता के लिए आवश्यक भी है। यदि चिंता बहुत बढ़ जाती है और इसके व्यापक दुष्प्रभाव व्यक्ति के पारिवारिक, सामाजिक और आर्थिक जीवन पर पड़ने लगता है तो हम इसे घबराहट और चिंता-एंग्ज़ायटी रोग कहते हैं।
चिन्ता विकार प्रायः तीन प्रकार का होता है-
- सामान्यीकृत चिन्ता -एंग्ज़ायटी डिसआर्डर
- तीव्र घबराहट या पैनिक की बीमारी-पैनिक अटैक
- दुर्भीति या फोबिया -अनावश्यक डर
व्यापक चिन्ता रोग
व्यापक चिन्ता रोग में व्यक्ति जरूरत से ज्यादा और अवास्तविक चिन्ता से ग्रस्त होता है। यह चिन्ता किसी विशेष चीज को लेकर नहीं होती और लगातार रहती है। इसके शारीरिक लक्षण हैं- जैसे- मुँह सूखना, माँसपेशियों में तनाव और खिंचाव, जल्दी थक जाना, साँस फूलना, पसीना आना, चक्कर आना, उबकाई या उल्टी आना, पेट संबंधी गड़बड़ियाँ, नींद न आना आदि।
इसके कुछ मानसिक लक्षण भी हैं जैसे- काम में मन न लगना, चिड़चिड़ाहट होना, समस्याओं का समाधान करने में असमर्थता, सही प्रकार से काम न कर पाने का डर और विभिन्न बीमारियों का डर लगा रहना।पैनिक रोग
तीव्र घबराघट की स्थिति में व्यक्ति को अचानक बहुत तेज घबराहट होने लगती है। व्यक्ति को लगता है उसका दम घुट रहा है, साँस लेने में दिक्कत होती है, चक्कर आने लगता है, पूरे शरीर में एक अजीब सी झनझनाहट होती है। ये लक्षण इतने तीव्र होते हैं कि व्यक्ति को लगता है कि वो मर जाएगा या उसे कोई भयानक बीमारी हो जाएगी जैसे- बेहोशी, हृदय गति रुकना, पागल हो जाना आदि। ये दौरे स्वतःसमाप्त हो जाते हैं या बार-बार होते रहते हैं। इन दौरों के बीच कुछ लोग बिल्कुल ठीक रहते हैं और कुछ हमेशा आने वाले दौरे की चिन्ता में रहते हैं।
फोबिया
फोबिया
इसमे व्यक्ति को किसी विशिष्ट वस्तु, स्थान या स्थिति से अनावश्यक डर हो जाता है और व्यक्ति उन चीजों या स्थानों से भागने या उनकी अवहेलना करने की कोशिश करता है। इसके कई उदाहरण हैं जैसे-कुछ लोगों को छिपकली या तेलचट्टों से बहुत डर लगता है, कुछ को ऊँचाई, बन्द स्थान जैसे-लिफ्ट, ऐसी जगह जिससे बाहर निकलने के ज्यादा रास्ते न हों, भीड़भाड़ आदि से बहुत डर लगता है।
कारण
इसके कई कारण हैं जैसे- प्रतिष्ठा या लक्ष्य की क्षति की आशंका, अवांछित इच्छाओं के पता चल जाने का डर, अपराध भावना पहले लगे आघात की पुनः सक्रियता आदि। कई बार यह आनुवंशिक भी होती है। मष्तिष्क और जीवरासायनी यानी बायोकेमिकल असमानताएँ भी इसके लिए जिम्मेदार हैं।
उपचार
इस रोग का उपचार प्रभावी ढ़ंग से किया जा सकता है। इसके इलाज के कई विकल्प उपलब्ध हैं जिनसे कुछ लोग पूरी तरह ठीक हो जाते हैं तो कुछ लोग लक्षणों के रहते हुए भी सामान्य जिन्दगी जी लेते हैं।
इसके प्रमुख इलाज है :
औषध चिकित्सा और मनोवैज्ञानिक चिकित्सा। ऐसी दवाइयाँ उपलब्ध हैं जो चिन्ता या इसके दौरों में कमी लाती है और इनको रोकती है। इनके द्वारा पूर्वानुमानित घबराहट भरी स्थितियों में भी लाभ मिलता है पर इनका सेवन डाक्टर की सलाह से ही करना चाहिए।
मनोवैज्ञानिक चिकित्सा में व्यक्ति के विचारों और व्यवहारों में परिवर्तन लाया जाता है। इसमें पीड़ित व्यक्ति के साथ ही साथ उसके परिवार की प्रमुख भागीदारी होती है। इसमें व्यक्ति की रोग के बारे में व्यापक जानकारी देकर उससे लड़ने की कला सिखाई जाती है।
इसके प्रमुख इलाज है :
औषध चिकित्सा और मनोवैज्ञानिक चिकित्सा। ऐसी दवाइयाँ उपलब्ध हैं जो चिन्ता या इसके दौरों में कमी लाती है और इनको रोकती है। इनके द्वारा पूर्वानुमानित घबराहट भरी स्थितियों में भी लाभ मिलता है पर इनका सेवन डाक्टर की सलाह से ही करना चाहिए।
मनोवैज्ञानिक चिकित्सा में व्यक्ति के विचारों और व्यवहारों में परिवर्तन लाया जाता है। इसमें पीड़ित व्यक्ति के साथ ही साथ उसके परिवार की प्रमुख भागीदारी होती है। इसमें व्यक्ति की रोग के बारे में व्यापक जानकारी देकर उससे लड़ने की कला सिखाई जाती है।
चिन्ता विकार से पीड़ित व्यक्ति को क्या करना चाहिए?
- (१) ऐसे व्यक्ति को सबसे पहले अपने निजी चिकित्सक या अन्य चिकित्सक से सलाह लेनी चाहिए।
- (२) यदि उनके अनुसार इन लक्षणों का कोई शारीरिक आधार न हो तो आपको निश्चित रूप से मनोचिकित्सक या वैधानिक मनोवैज्ञानिक से मिलना चाहिए।
चिन्ता या घबराहट एक आम बात है, शायद ही कोई व्यक्ति है जिसे कुछ-न-कुछ चिंता न हो, या उसे घबराहट न हो। पर इसका इलाज भी संभव है।
इस स्थिति में साधारण अपेक्षाएं ही रखें। ज्यादा ऊंची इच्छाओं पर काबू रखने से बेफिक्र रहेंगे। हल्की कसरत भी कारगर होती है। जैसे हल्के-फुल्के योगासन या टहलना। निर्धारित दिनचर्या, जैसे समय पर खाना, सोना आदि। जीवन के जटिल मुद्दों को निकट सहयोगी या मित्र के साथ बांटना और उनकी राय से उनका हल निकालना। आपसी बातचीत से समस्या का हल न हो, तो विशेषज्ञ की मदद लेना।
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