सेप्टिसीमिया
- विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़ ये एक ऐसा संक्रमण है जो तब होता है जब इंसान के शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र (इम्यून सिस्टम) किसी संक्रमण-इंफ़ेक्शन के जवाब में किंचित अधिक सक्रिय हो जाता है।
- सेप्टिसीमिया होने पर आरंभिक समस्या हल्की लग सकती है जैसे उंगली में कहीं हल्की सी खरोंच या कट। लेकिन अगर सही वक़्त पर इसकी वजह का पता नहीं चला तो शरीर को बहुत नुक़सान हो सकता है। मसलन, ऊतक-टिश्यू को क्षति पहुंच सकती है, कोई अंग काम करना बंद कर सकता है और मृत्यु भी हो सकती है।
- सेप्टिसीमिया क्यों होता है ? इसकी असल वजह अभी तक पता नहीं चल पाई है, इसके विनाशक असर को देखते हुए इसे 'साइलेंट किलर' कहा जाता है।
- सेप्टिसीमिया को पहचान पाना भी बहुत मुश्किल है क्योंकि इसके आरंभिक लक्षण किसी आम संक्रमण और बुखार जैसे होते हैं।
- सेप्टिसीमिया फ़ंड ऑफ़ यूनाइटेड किंगडम के अनुसार सेप्टिसीमिया के छह प्रमुख लक्षण हैं-
1. बोलने में परेशानी
2. मांसपेशियों में दर्द
3. ठंड लगना
4. पेशाब में तकलीफ़
5. सांस लेने में परेशानी और
6. त्वचा-स्किन पर धब्बे या खुजली.
यह मरीज को खतरे में डालने वाला संक्रमण है, जो रक्त में जीवाणुओं के फैलने से होता है। इसमें मरीज की हालत शीघ्र ही अत्यन्त गंभीर हो जाती है। फेफड़े व अस्थियों में भी संक्रमण हो जाता है। रोगी को तेज बुखार होता है, श्वांस व हृदय की गति बढ़ जाती है, रक्तचाप- ब्लड प्रेशर कम होना तत्पश्चात डीआईसी (डिसेमिनेटेड इंट्रावेस्कुलर कोगुलेशन) के कारण नसों में जगह-जगह रक्त जमने से आंतरिक रक्तस्राव शुरू हो जाता है। जिससे शरीर के महत्वपूर्ण अंग काम करना बंद कर देते हैं और हृदयाघात की संभावना बनी रहती है।
जागरण
रोग निदान
रक्तविषाक्तता बहुधा प्राणघातक सिद्ध होने से चिकित्सक इसका सटीक कारण पता करने से पूर्व ही इसकी चिकित्सा आरम्भ करते हैं।
वर्ष 2012 में निश्चितअंतर्राष्ट्रीय निर्देशों के अनुसार रोगी की स्थिति ज्ञात होने के छः घंटों के भीतर ही पुनर्जीवन उपचार प्राप्त होना चाहिए तथा प्रतिरक्षात्मक-एण्टीबायोटिक उपचार आरम्भ हो जब तक रक्त-परीक्षण के नतीजे तैयार हों।
दृश्य निर्णय तथा रक्तपरीक्षण के परिणाम रक्तविषाक्तता के उद्गम कारणों, चरणावस्था तथा शारीरिक अँगों में विस्तार तथा व्यघात तीव्रता निश्चित करने हेतु होते हैं।
सामान्यतः स्टेफिलोकॉक्सस, एस्चेरिचा कोलि या ई-कोलि तथा स्टेफिलोकॉक्सस ऐण्टेरोकॉक्सस तथा क्लेबसिएला की विभिन्न प्रजातियाँ तथा और भी बहुत से विषाणु जो सेप्सिस का कारण बनते हैं।
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