मद्यपान के दुष्परिणाम
अल्कोहोलिज़्मः
19वीं
सदी और 20वीं सदी की शुरुआत में, शराब पर निर्भरता को शराबीपन शब्द के द्वारा प्रतिस्थापित किये
जाने से पूर्व इसे मदिरापान कहा
जाता था।
मद्य सेवन के फलस्वरूप मस्तिष्क प्रक्रिया में बदलाव शराबी को मद्य सेवन हेतु बाध्यकर, उसके मद्यमुक्त होने की अक्षमता को बनाए रखता है।
विश्व
स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि दुनिया भर में शराबियों की संख्या 140 मिलियन है।
परिभाषा
प्रतिकूल परिणामों की जानकारी होने के बावजूद शराब के सेवन की आदत जैसी विशेषता वाला प्राथमिक और गंभीर रोग।
ऐतिहासिक
बाइबिल, मिस्र और बेबीलोन के स्रोतों में शराब के दुरूपयोग और इस पर निर्भरता तथा महाभारत के अंत में यदुकुल के सर्वनाश का प्रत्यक्ष कारण मद्यपान ही सामने आता है।परंपरा
पश्चिम की लोकप्रिय संस्कृति में 'शहरी पियक्कड़' एक खास चरित्र होता है। भारतीय फिल्मों में शराबी नायक लेखकों द्वारा महिमामंडित किया गया जो एक सीमा तक सफल हुआ।
अध्ययन
किशोरों में आत्महत्या का 25 फीसदी शराब के अपप्रयोग से
जुड़ा हुआ है। लगभग 18 प्रतिशत शराबी आत्महत्या किया करते हैं, और शोध में पाया गया है
कि 50 प्रतिशत से अधिक आत्महत्याएं शराब या ड्रग निर्भरता से जुड़ी हुई हैं।
शराब के आदी व्यक्ति की पहचान
जब व्यक्ति लगातार शराब पीने लगता है
तब समस्याओं की निरंतर बढ़ती हुई स्थितियाँ आती है तथा शारीरिक समस्याएँ विशेष रूप
से पेट की बीमारियाँ, यकृत (लीवर) की बीमारी विशेषतः सिरोसिस, स्नायु तंत्र की कमजोरियाँ, कैंसर आदि।
यदि आदतों का शिकंजा
बहुत मजबूत हो चुका है तो आप अपने आप से चार सवाल पूछें-
·
क्या आपने शराब को कम करने
या बंद करने की कोशिश की है?
·
क्या आपके शराब पीने पर
किसी ने कभी कुछ कहा जिससे आप क्रोधित हो गये?
·
क्या आपको ऐसा लगता है कि
शराब पीने से आप किसी दोषभाव से पीड़ित है?
·
क्या सुबह उठते ही आपको
शराब पीनी पड़ती है ताकि आपके शरीर में स्थिरता आये?
यदि इनमें से दो सवाल के भी उत्तर हाँ
में है तो आप शराब के आदि हो चुके है और आपको तुरन्त चिकित्सा व्यवस्था करवानी
चाहिए वरना आपका जीवन खराब हो सकता है।
शारीरिक
स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव
शराब के सेवन से जुड़े हुए विपरीत प्रभावों में शारीरिक स्वास्थ्य को हानिकारक हैं-
जिगर-लीवर का सूत्रण रोग, अग्नाशय-पॅनक्रियाज का कोप व कैंसर, मिरगी, बहुतंत्रिका
विकृति, मादक मनोभ्रंश, हृदय रोग,
पोषण की कमी, यौन दुष्क्रिया और इनमें कई स्रोतों से होने वाली मृत्यु भी शामिल हो सकते हैं।
मानसिक
स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव
लंबे समय तक शराब के सेवन से मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत ज्यादा असर पड़
सकता है। 25 प्रतिशत से अधिक शराबियों में गंभीर मनोरोग की शिकायत होती है तथा शराब छोड़ने के दौरान शुरू में तो भीषण रूप लेने लगते हैं, लेकिन संयम से विलुप्त हो जाते हैं।
शराबियों
में आत्महत्या के कारणों में, मस्तिष्क विकृति के साथ सामाजिक अलगाव भी शामिल है। किशोरों की आत्महत्या के कुल मामलों में
से 25 प्रतिशत मामले शराब की लत से संबंधित पाए जाते हैं।
सामाजिक एवं आर्थिक प्रभाव
शराब का सेवन सिर पर आघात, वाहन दुर्घटना, हिंसा और मारपीट का प्रमुख कारक होता है। गर्भवती महिला द्वारा शराब के सेवन से भ्रूण, शराब सिंड्रोम का शिकार हो सकता है, जो एक लाइलाज और हानिकारक परिस्थिति है।
शराब के दुरूपयोग से आर्थिक नुकसान का आंकड़ा विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा एकत्र किया गया है, जो किसी देश के सकल घरेलू उत्पाद-जीडीपी का एक से लेकर छह प्रतिशत तक होता है।
शराबीपन से उत्पन्न होने
वाली सामाजिक समस्याओं में शराब की लत अपराधों की वर्धित जोखिम से भी जुडी है।रोजगार की हानि, परिवार एवं दोस्तों से अलगाव और संभवतः वैवाहिक जीवन में संघर्ष और तलाक, या घरेलू हिंसा का परिणाम दे सकता है। बच्चों की उपेक्षा से उनके भावनात्मक विकास की क्षति होती है ।
शराब से वापसी
शराब से वापसी अधिकांश
अन्य नशों से काफी अलग है जिसमें ऐसा करना बहुत घातक हो सकता है। एकदम अचानक से, छोड़
दिया जाता है, तो व्यक्ति के तंत्रिका तंत्र को अनियंत्रित सिनेप्स उद्वेग का सामना करना पड़ता है।जीवन के लिए खतरनाक मतिभ्रम, कंपकंपी
और संभवतः दिल का धड़कना बंद हो जाना भी शामिल है।
शराब
छोडने के उपाय
मनश्चिकित्सा केन्द्रों में नशा
विमुक्ति केन्द्र होते है जहाँ डी-टोक्सीफिकेशन द्वारा शराब छुड़ाने तथा उसके
उपरांत मोटिवेशन थैरपी, फिजियोथैरपी तथा ग्रुप थैरपी द्वारा इससे निजात
पाने की कोशिश की जाती है। स्वयं व्यक्ति के प्रबल इच्छाशक्ति तथा परिवार के सहयोग
तथा चिकित्सकों के सतत् प्रयास से सफलता पूर्वक इसका इलाज संभव है।
रोकथाम
चूंकि
शराब सेवन विकारों को पूरे समाज पर असर डालने वाले कारक के रूप में देखा जाता है, इसलिए विश्व स्वास्थ्य संगठन, यूरोपीय संघ और अन्य क्षेत्रीय निकायों, देश की सरकारों और सांसदों ने शराबीपन से होने
वाले नुकसान को कम करने के उद्देश्य से शराब की नीतियों का निर्माण किया है।
साभार संकलनः
विकिपीडिया से
एक
सर्वेक्षण द्वारा मद्यपान आदी किशोर वय के 15 वर्ष से अधिक, 30 प्रतिशत तथा 19
वर्ष के 75 प्रतिशत व्यसनी मद्यपान जनित संज्ञाशून्यता के ग्राह्य हैं।
चिकित्सीय
भाषा में इस स्मृति विलोप को परिभाषित
किया जाए तो यह एक तत्कालीन अस्थायी अग्रगामी स्मृतिभ्रंष है, एक ऐसी स्थिति जिसमें
नवीन स्मृति निर्माण की क्षमता, लघु अंतराल के लिए क्षीण/नष्ट
हो जाती है। दूसरे शब्दों में आप एक समयांतर को स्मृत नहीं रख पाते क्योंकि
मस्तिष्क इसे इस अंतराल में स्मृतिबद्ध कर सहेजने में असमर्थ था।
कृंतकों
का साथ परीक्षण के दौरान यह
जानने के लिए कि इस स्थिति के लिए मद्य की कितनी मात्रा की आवश्यकता है। उन्होने
पाया कि रक्त और मद्य की सांद्रता
भयानक रुप से अधिक होनी चाहिए, लगभग 300 मिलीग्राम प्रति डेसीलीटर, तद्नुसार लगभग
2.4 प्रति हजार।
तंत्रिका विज्ञानी अभी इस प्रक्रिया को भली भाँति समझ नहीं
पाए हैं कि अंततः कैसे यह स्मृतिविलोप जन्मता है। दीर्घकाल से अण्वेषकों द्वारा यह
अनुमानित है कि मद्य से मस्तिष्क स्मृति क्षमता का ह्वास होता है क्योंकि मद्य से
मस्तिष्क की कुछ कोशिकाऐं पूर्णतः मृत हो जाती हैं।
निश्चित
ही अभी यह संबंध संपूर्ण रूप से समझा नहीं गया है, फिर भी निर्विवाद रूप से यह
स्थापित सत्य है कि मद्य सेवन, स्मृति तथा अन्य संज्ञानात्मक व्यवहार को प्रभावित
करता है, लघु तथा दीर्घावधी रूप से। अतः सर्वथा उचित और प्रभावशाली कार्यनीति,
मद्यपान जनित स्मृति विलोप को वर्जन करने की, अत्यधिक मात्रा में मद्यपान को
सर्वथा वर्जित किया जाए। विशेष रुप से मद्य का अन्य मादक पदार्थों व प्रतिबंधित
दवाओं का मिश्रण स्मृति नाश के साथ ही शरीर का नाश करता है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें