हमारा गृह, हमारी पृथ्वी वर्तमान काल में एक अन्तर्हिमयुग के मध्य है
तथा अंतिम हिमयुग लगभग दस सहस्त्र वर्ष पूर्व समाप्त हुआ है।
अन्तर्महाद्वीपीय हिमावरण के शेष चिन्ह ग्रीनलैंड व एंटार्टिक व
अपेक्षाकृत लघु हिमनद जैसे बॅफिन द्वीप हैं।
https://en.wikipedia.org/wiki/Ice_age
हाल ही के हिमयुग का सर्वाघिक महत्वपूर्ण परिणाम होमो सेपियंस का प्रादुर्भाव है। मनुष्यों द्वारा निष्ठुर वातावरण का सामना नए साधन व उपकरण विकसित कर, उष्णावरण अपनाए और भूमिबँधों को समस्त पृथ्वी पर विस्तार-वृद्धि हेतु अपनाया। होलोसीन इपॉक के आरंभ के साथ ही मनुष्य ने अनुकूल परिस्थिती का लाभ लेने हेतु कृषि तथा प्राणिपालन की तकनीकि आत्मसात की।
https://www.history.com/topics/pre-history/ice-age
फलत: जीवन में उपजी निश्चिंतता ने ज्ञान विज्ञान व आध्यात्म को जन्म दिया जो वैदिक सभ्यता कहलाई।
तत्पश्चात विकसित सामाजिक परिस्थितियों द्वारा वैदिक धर्म का विराट सर्वव्यापि स्वरूप सामने आया-
जिसका मूलमंत्र है-वसुधैव कुटुँबकम।...................................................
नासदासीन्नोसदासीत्तादानीं नासीद्रजो नो व्योमापरो यत |
किमावरीव: कुहकस्यशर्मन्नम्भ: किमासीद्गहनं गभीरं ||
हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेकासीत ।
स दाधार पृथ्वीं ध्यामुतेमां कस्मै देवायहविषा विधेम ॥
और दिया-कालजयी आध्यात्म...................................................
क्षोभ है..
हालांकि भारतीय उपमहाद्वीप में उपलब्ध विपुल कार्य इतने विस्तृत हैं कि विज्ञानसम्मत कसौटी पर मापने से भी इन्हें सम्पन्न करने हेतु एक हिमयुग का अंतराल अपर्याप्त है।
साथ ही कलयुग की कुछ प्रकाश गतिक शताब्दियों का अपरीमित ज्ञान भी मानव मस्तिष्क की अनन्त कोशिकाओं के गूढ़ संचालन में अवस्थित- कपट, स्वार्थ, झूठ, हिंसा, अत्याचार आदि को लांघकर मानवता से साक्षात्कार कराने में असमर्थ है। परमात्मा के अथक प्रयत्न भी विफल हैं।
सहस्त्रों वर्षों से एकसा ही दृश्य है। तुमुलनाद है-शक्तिमान भारत-विश्व का?
भारतीय उपमहाद्वीप ,मेरी मातृभूमि सदियों से क्रंदन करती, आर्तनाद में डूबी,
कातर दृष्टी से आतताइयों की कुटिल स्मित देखती है।
इस सनातन भूभाग के करोड़ों पीड़ित, चारों दिशाओं में हर ओर एक ही दृश्य देखते हैं।
कुटिल मनुष्यों की कुटिल बुद्धि देश के मूल निवासियों का रक्तपान कर साम्राज्य बनाती
और उसी से आतताइयों का पोषण करती है।
छद्म और निर्बल प्रतिरोध व्यर्थ सिद्ध होते आ रहे हैं।
सर्वसम्मत अवतारी भी परपोषितों के सम्मुख छुद्र हैं।
देश का प्रमुख घटक इतना असहाय है कि प्रतिरोधहीन है,
बुद्धि जड़ है दुखों से, दुख-पीड़ा है परजीवियों से।
आश्रित भी आतताई बन, क्रंदन के मध्य, पीड़ित,
कथित आडम्बर का वैभव निहार रहा है।
कोपलें फूटकर अचानक शूलों में बदल जाती हैं।
समस्त धरा पर मृत्युदूत बन तांडव करते हैवानों के साथ
मुँह छुपाकर रास रचाते पिशाचों का अंतकाल क्या आयात किया जाएगा?
संस्कृति को जन्म देॆने वालों से निचोड़े गए प्राणों के बदले
पाप लक्ष्मी के छद्म कणों से क्या वैदिक परंपरा पर आघात विस्मृत हो जाएगा?
अर्जुन को मोह त्याग समर में अधर्मी प्रियजनों के वध हेतु आबद्ध होना पड़ा।
तरूणाई छल से ग्रसित हो पुरातन विस्मृत अवश्य कर चुकी
किन्तु कब आनुवांशिकी नवसृजन कर बैठे-अनिश्चित है।
दुर्मति यह ना भूलें कि प्रकृति विरूद्ध उच्छृंखलता का अंत समूल नाश होता है।
प्रत्येक वैदिक धर्मावलंबी जहाँ है वहीं से अधर्म के नाश का प्रयत्न करे
अथवा पँक्ति में निष्क्रिय बैठकर अपने अंत की प्रतीक्षा करें।
अधर्मी के साथ खड़ा भी मृत्यु का भागी है।
...................................
सर्वदा प्रेममयी.. मातृभाषा...हिन्दी।
स्वसंज्ञानदात्री.. हिन्दी... शतसहस्त्र नमन।
विज्ञान सम्मत तार्किक बुद्धि भारतीय जनमानस में
मिट्टी की सौंध तथा वायु की सुगंध सदृश्य है।
मातृभाषा में तकनीक की पहुँच ना के बराबर है।
नोदित व मुद्रित नैसर्गिक शब्दों से रहित दृष्टांत भी
आयातित है किंतु भुगतान इस धरा से उपार्जित है।
व्यापार की गूढ़ कूटता में सभी विकल्प विद्यमान हैं
जो लाभवश समस्त दिशाओं को स्वकेंद्रित कर लेता है,
तब मात्र लाभ ही ध्येय रह जाता है।
धर्म के लोप से जनकल्याण विहीन-प्रकृती शेष रह जाती है।
गूढ़आर्थी नियमों के द्रुतगामी स्वेच्छाचारी अश्व स्व-बाँधवों के सहायक बन,
घटनाऐं स्वेच्छानुसार वर्णित की जाती हैं
तथा जनकार्य स्व प्रयोजित होकर
स्वस्तुति ही उपलब्धि बन,
लोरी की मानिंद स्वप्नलोक को यथार्थ बना देती है।
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अनगिनत विरोधों के चलते निर्विवाद रूप से भारत की मुख्य भाषा हिन्दी ही है।क्षेत्र, काल, समाज राज्य से परे अखण्ड भारत हिन्दी ही बोलता-समझता व पढ़ता है। व्यापारी इस तथ्य को भली भाँती समझकर भारत में व्यापार करते हैं।
जाति व्यवस्था के आलोचकों में एक भी नाम अकेला नहीं, सबके पास अपना उपनाम है- परिवार, गाँव, नगर, देश, उपाधी, विशेषता, पंथ आदि। अथवा पाँच दस पीढ़यों पूर्व के सद्कर्म व उपलब्धियों का, चाहे वे अन्य की ही क्यों न हों।
जिसके पास हजार पाँच सौ पीढ़यों का अकाट्य ज्वलंत लेखा जोखा हो, उपलब्धियों व सद्कार्यों का, जिसे मिटाने वालों को जग कालकवलित कर चुका, वह समस्त नरसंहारों से भी अधिक यातना सहकर अभावों में सृजन करता है। प्रकृती का नाश करने वालों के समूल नाश देखने वाला अनन्त दृष्टी का आराधक है।
प्रतिदिन पुष्ट होता आनुवांशिकीय श्रोत, रचनाकर्म व सृष्टी को सहेज रहा है----विध्वंस का भी साक्षात, मूक दृष्टा है।
सद्कर्मों व परमार्थ से प्राप्त आनुवांशिकी भौतिक रूप से संतती में प्रवाहित होती है, साथ ही सद्कर्मों की गूँज ओर गंध से समस्त जगत को भी व्याप्त करती है। राक्षसी प्रवृती भी इसी तरह प्रवाहित हो कर आतंक की संरचना करती है। अण्वेषण कर स्रोत ढ़ूंढा जा सकता है। किन्तु पुन:-पुन: तुच्छ निहित स्वार्थ बाधा बनते हैं।
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सनातन परंपरा-वैदिक संस्कृती की कामधेनु का दुग्ध-घृतामृत समस्त मानव जाति सहस्राब्दियों से सेवन कर रही है।
वैदिक पद्धती हेतु इस प्रजाति का लेशमात्र भी उपलब्ध नहीं, प्रलाप ही इनकी उपलब्धी है।
पीढ़ियों से याचक बने वर्तमान में भी मोहव्याप्त हो- और, और जपते हैं।
मात्र विचार से ही उद्वेलित होकर युद्धोन्मादित होने वाले कृतघ्न पुन: कन्दरावासी होते जाते हैं?
मनुष्यत्व को त्याग अमानवीयता को अंगीकार कर मदाँध हो पुन: पूर्वस्थित होते दीख पड़ते हैं।
प्रकृति प्रदत्त परंपरा अपनी राह पर ही है। समस्त तामसिकता का बल भी इसे रोकने में असमर्थ है। यह अब ब्रह्माँड को व्याप्त करने हेतु उद्यत है। ज्ञानप्रकाश के आगे तामसिक धूल का अस्तित्व ही क्या?
भीष्म-देवव्रत का युगान्त, कृष्ण के कालान्त की भस्म, पार्थ के पराभव की छाया-कलि-कालभैरव यंत्राधिष्ठाता के नेतृत्व में मानव को अग्रलक्ष्य करते हैं।
उत्तिष्ठ-उत्तिष्ठ का नाद वैदिक संतति के तंत्र अण्वेषण-विनिर्माण से ब्रह्माण्ड में ज्ञान ज्योती की तड़ितकौंध की प्रतीक्षा में उद्विग्न है।
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औपनिवेषिक देशों के मूल निवासी स्वतंत्रता के दशकों पश्चात भी उपनिवेशी भाषाओं के प्रभाव से स्वतंत्र नहीं हो पाए वरन अधिकाधिक रूप से इसके पाश में जकड़ते जा रहे हैं।
अपनी कुटिल पद्धतियाँ जैसे प्रशासनिक, शैक्षिक, सामाजिक आदी बलपूर्वक पालन करा कर, आक्रांता की बौद्धिक पराधीनता, औपनिवेशिक देशों को पंगु कर अब संक्रमित आनुवांशिक परिवर्तन में व्यस्त है।
आचरण व तर्क-मंथन की मूलता लुप्त है।
क्लिष्ट अपरिचित ध्वनी व लिपी में प्रस्तुत सामान्य जनहितैषी निर्णय/प्रस्ताव कुचेष्ठ हेतु माया चक्र है, वरदायी है।
सहस्त्रों सहस्र के अपरिपक्व मस्तिष्क हेतु यह व्याधि है जिसके उपचार का कभी प्रयास भी नहीं हुआ, हाँ! संजीवनी है, कुटिल विध्वंसता हेतु।
विकसित, मूढ़ व विकासशील जैसे शब्दों में मात्र ढ़ाई अक्षर का अंतर है-शिक्षा।
इस शब्द को समस्त कुटिल मस्तिष्क साक्षात मृत्यु तुल्य देखते-मानते हैं।
अलगाव और दमन का हर प्रयास इसके आगे लुप्त हो जाता है
और इसके अभाव में हर प्रकार के रोगाणु विषाणु फलते-फूलते हैं।
किन्तु उन्माद, वो भी इतना भीषण, कि शिक्षित भी पुरातन को विस्मृत कर विक्षिप्तता का आचरण अपना ले और परजीवी आक्रान्ताओं का उपासक हो जाए? यह तो समूह के अचेतन का नष्ट हो जाना है, अथवा प्रवृति का सतह पर आना? विलक्षण है, जनमानस का यह सम्मोहन, मानसिक अस्वस्थता। मानस की स्वस्थ परिस्थिती प्रकृतिप्रदत्त आचरण ही है।
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और पढ़े:
http://brihaspatisharma.blogspot.com/
हैदराबाद का लोक पर्व
बोनालु
दृश्य वीभत्स... जघन्य कृत्य.. मानवता तार तार..जड़ समस्त मुखाग्र.. स्तब्ध क्रंदन, प्रश्न है.. क्या यही है..ईश्वर की संतान ? अथवा स्वघोषणा के क्रूर कालाट्टहास का कोई उत्तर है? मनुपुत्र मुख दबा मौन हताश, अपने ही पाश में छटपटाता रहेगा? धिक्कार है.. शाप है परिवारों का..निरंकुशता पर सत्य के वज्रपात का।.........
कति की पिपासा
द्वितीय
सवर्णों
में एक जाति आती है ब्राह्मण-जिस पर सदियों से आक्रमण हो रहे
है।
आरोप
ये लगे कि ब्राह्मणों ने जाति
का बटवारा किया!
*उत्तर:-*
सबसे प्राचीन ग्रंथ वेद जो अपौरुषेय जिसका संकलन वेदव्यास जी ने किया। जो मल्लाहिन के गर्भ से उत्पन्न हुए।
सबसे प्राचीन ग्रंथ वेद जो अपौरुषेय जिसका संकलन वेदव्यास जी ने किया। जो मल्लाहिन के गर्भ से उत्पन्न हुए।
18-पुराण,
महाभारत,
गीता
सब व्यास विरचित है जिसमें
वर्णव्यवस्था और जाति व्यवस्था
दी गई है। रचनाकार व्यास
ब्राह्मण जाति से नही थे।
ऐसे
ही कालीदासादि कई कवि जो
वर्णव्यवस्था और जाति-व्यवस्था
के पक्षधर थे और जन्मजात
ब्राह्मण नहीं थे।
*मेरा
प्रश्न:-*
कोई एक भी ग्रन्थ का नाम बतलाइए जिसमें जातिव्यवस्था लिखी गई हो और ब्राह्मण ने लिखा हो?
कोई एक भी ग्रन्थ का नाम बतलाइए जिसमें जातिव्यवस्था लिखी गई हो और ब्राह्मण ने लिखा हो?
शायद
एक भी नही मिलेगा। मुझे पता
है आप मनु स्मृति का ही नाम
लेंगे,
जिसके
लेखक मनु महाराज थे,
जोकि
क्षत्रिय थे,
मनु
स्मृति जिसे आपने कभी पढ़ा ही
नहीं और पढ़ा भी तो टुकड़ों में!
कुछ
श्लोकों को जिसके कहने का
प्रयोजन कुछ अन्य होता है और
हम समझते अपने विचारानुसार
है। मनु स्मृति पूर्वाग्रह
रहित होकर सांगोपांग
पढ़ें।छिद्रान्वेषण की अपेक्षा
गुणग्राही बनकर स्थिति स्पष्ट
हो जाएगी।
*अब
रही बात कि ब्राह्मणों ने क्या
किया?*
तो
सुनें!
यंत्रसर्वस्वम्
(इंजीनियरिंग
का आदि ग्रन्थ)-भरद्वाज,
वैमानिक
शास्त्रम् (विमान
बनाने हेतु)-भरद्वाज,
सुश्रुतसंहिता
(सर्जरी
चिकित्सा)-सुश्रुत,
चरकसंहिता
(चिकित्सा)
-चरक,
अर्थशास्त्र(जिसमें
सैन्यविज्ञान,
राजनीति,
युद्धनीति,
दण्डविधान,
कानून
आदि कई महत्वपूर्ण विषय हैं)-
कौटिल्य,
आर्यभटीयम्
(गणित)-आर्यभट्ट।_
ऐसे
ही छन्दशास्त्र,
नाट्यशास्त्र,
शब्दानुशासन,
परमाणुवाद,
खगोल
विज्ञान,
योगविज्ञान
सहित प्रकृति और मानव कल्याणार्थ
समस्त विद्याओं का संचय अनुसंधान
एवं प्रयोग हेतु ब्राह्मणों
ने अपना पूरा जीवन भयानक जंगलों
में,
घोर
दरिद्रता में बिताए। उसके
पास दुनियाँ के प्रपंच हेतु
समय ही कहाँ शेष था?
कोई
बताएगा समस्त विद्याओं में
प्रवीण होते हुए भी,
सर्वशक्तिमान्
होते हुए भी ब्राह्मण ने पृथ्वी
का भोग करने हेतु गद्दी स्वीकारा
हो…?
तत्कालीन इतिहास संरचना
जिन हाथों में सौपी गई वेॆ पूर्वाग्रहों व प्रायोजित काज के तहत जहर बोने लगे।
ब्राह्मण
हमेशा से यही चाहता रहा है कि
हमारा राष्ट्र शक्तिशाली हो
अखण्ड हो,
न्याय
व्यवस्स्था सुदृढ़ हो।
*सर्वे भवन्तु सुखिन:सर्वे सन्तु निरामया: सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दु:ख भाग्भवेत्।*
का मन्त्र देने वाला ब्राह्मण, वसुधैव कुटुम्बकम् का पालन करने वाला ब्राह्मण सर्वदा काँधे पर जनेऊ कमर में लंगोटी बाँधे एक गठरी में लेखनी, मसि, पत्ते, कागज, और पुस्तक लिए चरैवेति-चरैवेति का अनुशरण करता रहा।
मन में एक ही भाव था लोक कल्याण!
*सर्वे भवन्तु सुखिन:सर्वे सन्तु निरामया: सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दु:ख भाग्भवेत्।*
का मन्त्र देने वाला ब्राह्मण, वसुधैव कुटुम्बकम् का पालन करने वाला ब्राह्मण सर्वदा काँधे पर जनेऊ कमर में लंगोटी बाँधे एक गठरी में लेखनी, मसि, पत्ते, कागज, और पुस्तक लिए चरैवेति-चरैवेति का अनुशरण करता रहा।
मन में एक ही भाव था लोक कल्याण!
ऐसा
नहीं कि लोक कल्याण हेतु मात्र
ब्राह्मणों ने ही काम किया।
बहुत सारे ऋषि,
मुनि,
विद्वान्,
महापुरुष
अन्य वर्णों के भी हुए जिनका
महत् योगदान रहा है। किन्तु
आज ब्राह्मण के विषय में ही
इसलिए कह रहा हूँ कि जिस देश
की शक्ति के संचार में ब्राह्मणों
के त्याग तपस्या का इतना बड़ा
योगदान रहा।
चाहे
वो मंगल पांडेय हो,
या
चंद्रशेखर आज़ाद या गोपाल कृष्ण
गोखले या झांसी की रानी लक्ष्मीबाई
या बाल गंगाधर तिलक..
Quora
भारत के बारे में 40 रोचक तथ्य जो आप नहीं जानते:-भारत के बारे में 40 रोचक तथ्य जो आपको नहीं जानतेवैसे तो भारत के बारे में हर बात खास और रोमांचक में होती है चाहे वह बात भारत के इतिहास के बारे में हो या फिर भारत से संबंधित किसी भी तरह के टेक्नोलॉजी के बारे में हो हर क्षेत्र में भारत में कोई ना कोई खास बात होती है आज इस पोस्ट में हम आपको भारत के बारे में रोचक तथ्य भारत के बारे में रोचक तथ्य भारत के बारे में सामान्य ज्ञान भारत के बारे में बताये भारत के बारे में बताया गया है.
1.विश्व का प्रथम ग्रेनाइट मंदिर तमिलनाडु के तंजौर में बृहदेश्वर मंदिर है। इस मंदिर के शिखर ग्रेनाइट के 80 टन के टुकड़ों से बने हैं। यह भव्य मंदिर राजाराज चोल के राज्य के दौरान केवल 5 वर्ष की अवधि में 1004 से1009 ईसवी के दौरान बनवया किया गया था।2.भारत 17वीं सदी के आरंभ तक ब्रिटिश राज्य आने से पहले सबसे अमीर देश था। क्रिस्टोफर कोलम्बस भारत की सम्पन्नता से आकर्षित हो कर भारत आने का समुद्री मार्ग खोजने चला और उसने गलती से अमेरिका को खोज लिया।3.श्रीलंका और दक्षिण भारत के कुछ भागों में दीपावली का उत्सव उत्तर भारत से एक दिन पहले मनाया जाता है।
4.1982 में भारतीय सेना द्वारा लद्दाख घाटी में सुरु और द्रास नदी के बीच निर्मित बेली ब्रिज विश्व में सर्वाधिक ऊँचाई पर बना पुल है।5.‘हिंदुस्तान’ नाम सिंधु और हिंदु का संयोजन है, जो कि हिंदुओं की भूमि के संदर्भ में प्रयुक्त होता है।6. सांप सीढ़ी का खेल ,तेरहवीं शताब्दी .में कवि संत ज्ञान देव द्वारा तैयार किया गया था इसे मूल रूप से मोक्षपट कहते थे। इस खेल में सीढियां वरदानों का प्रतिनिधित्व करती थीं जबकि सांप अवगुणों को दर्शाते थे। इस खेल को कौडियों तथा पांसे के साथ खेला जाता था। आगे चल कर इस खेल में कई बदलाव किए गए, परन्तु इसका अर्थ वहीं रहा अर्थात अच्छे काम लोगों को स्वर्ग की ओर ले जाते हैं जबकिबुरे काम दोबारा जन्म के चक्र में डाल देते हैं।
7.ग्रीक तथा रोमनों द्वारा उपयोग की गई की सबसेबड़ी संख्या 10^6(अर्थात 10 की घात 6) थी जबकि हिन्दुओं ने 10^53 जितने बड़े अंकों का उपयोग करना शुरू कर दिया था.
8.जयपुर में सवाई राजा जयसिंह द्वारा 1724 में बनाई गई जंतर मंतर संसार की सबसे बड़ी पत्थर निर्मित वेधशाला है।
9.दुसरे देशों में रहने वाले भारतीय 1 लाख करोड़ अमरीकी डालर हर साल कमाते हैं जिसमें से 30 हजार करोड़ बचाकर वे भारत भेज देते हैं।10 भास्कराचार्य ने खगोल शास्त्र के कई सौ साल पहले धरती द्वारा सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाने में लगने वाले सही समय की गणना की थी। उनकी गणना के अनुसार सूर्य की परिक्रमा में पृथ्वी को 365.258756484 दिन का समय लगता है।
7.ग्रीक तथा रोमनों द्वारा उपयोग की गई की सबसेबड़ी संख्या 10^6(अर्थात 10 की घात 6) थी जबकि हिन्दुओं ने 10^53 जितने बड़े अंकों का उपयोग करना शुरू कर दिया था.
8.जयपुर में सवाई राजा जयसिंह द्वारा 1724 में बनाई गई जंतर मंतर संसार की सबसे बड़ी पत्थर निर्मित वेधशाला है।
9.दुसरे देशों में रहने वाले भारतीय 1 लाख करोड़ अमरीकी डालर हर साल कमाते हैं जिसमें से 30 हजार करोड़ बचाकर वे भारत भेज देते हैं।10 भास्कराचार्य ने खगोल शास्त्र के कई सौ साल पहले धरती द्वारा सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाने में लगने वाले सही समय की गणना की थी। उनकी गणना के अनुसार सूर्य की परिक्रमा में पृथ्वी को 365.258756484 दिन का समय लगता है।
11.भारत ने अपने आखिरी 10,000 वर्षों के इतिहास में किसी भी देश पर हमला नहीं किया है।12.भारतीय गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त (598-668) तत्कालीन गुर्जर प्रदेश के प्रख्यात नगर उज्जैन की अन्तरिक्ष प्रयोगशाला के प्रमुख थे।13.वाराणसी, जिसे बनारस के नाम से भी जाना जाता है, एक प्राचीन शहर है जब भगवान बुद्ध ने 500 बी सी में यहां आगमन किया और यह आज विश्व का सबसे पुराना और निरंतर आगे बढ़ने वाला शहर है।14.नौकायन की कला का आविष्कार विश्व में सबसे पहले 6,000 वर्ष पूर्व भारत की सिंधु घाटी में हुआ था।15.बीजगणित, त्रिकोणमिति और कलन जैसी गणित की अलग-अलग शाखाओं का जन्म भारत में हुआ था।16.5000 साल पहले जब विश्व में ज्यादातर सभ्यताएँ खानाबदोश जीवन व्यतीत कर रही थीं भारत में सिंधु-घाटी उन्नति के शिखर पर थी।17.1896 तक भारत हीरों का एक मात्र स्त्रोत था और आधुनिक समय में हीरों के सबसे बड़े उपभोक्ता देशों में भारत तीसरे स्थान पर है। पहले व दूसरे स्थान पर क्रमशः अमेरिका और जापान हैं।18.भारत के बंगलुरु नगर में 2,500 से अधिक सॉफ्टवेयर कंपनियों में 26,000 से अधिक कंप्यूटर इंजीनियर काम करते हैं।19.शतरंज की खोज भारत में की गई थी।20.ईसा से 800 वर्ष पूर्व स्थापित तक्षशिला विश्वविद्यालय(आधुनिक पाकिस्तान) में 20,500 से अधिक विद्यार्थी 60 से अधिक विषयों की शिक्षा प्राप्त करते थे।21.माइक्रोसॉफ़्ट के 34% कर्मचारी, आईबीएम के 28% और इंटेल के 17% कर्मचारी भारतीय हैं.22.पेंटियम चिप का आविष्कार ‘विनोद धाम’ ने किया था। (आज दुनिया के 90% कम्प्युटर इसी से चलते हैं)23.भारत में बंदरों की गिणती 5 करोड़ है.24.सबीर भाटिया ने हॉटमेल बनाई. (हॉटमेल दुनिया का न.1 ईमेल प्रोग्राम है)25.कमल के फूल को भारत के साथ साथ वियतनाम के राष्ट्रीय पुष्प होने का गौरव भी प्राप्त है।26.भारत विश्व का सबसे बड़ा चाय उत्पादक और उपभोक्ता है। यहाँ विश्व की 30% चाय उतपादित होती है जिसमें से 25% यही उपयोग की जाती है।27.दुनिया का सबसे ऊंचा क्रिकेट का मैदान हिमाचल प्रदेश के चायल नामक स्थान पर है। इसे समुद्री सतह से 2,444 मीटर की ऊंचाई पर भूमि को समतल बनाकर 1993 में तैयार किया गया था।28.जैसलमेर का किला संसार का एकमात्र ऐसा अनोखा किला है जिसमें शहर की लगभग 25 प्रतीशत आबादी ने अपना घर बना लिया है।29.भारतीय रेल कर्माचारियों की संख्या के आधार पर संसार की सबसे बड़ी संस्था है जिसमें 16 लाख से भी अधिक कर्मचारी काम करते हैं।30.भारत 90 देशों को सॉफ्टवेयर बेचता है।31.कुंग फू के जनक तत्मोह या बोधिधर्म नामक एक भारतीय बौद्ध भिक्षु थे जो 500 ईस्वी के आसपास भारत से चीन गए।32.भारत विश्व में सबसे अधिक डाकघरों वाला देश है। इतने डाकघर संसार के किसी भी ओर देश में नहीं हैं।33.अमेरिका में 38% डॉक्टर भारतीय हैं.34.भारत में पाई जानेवाली 1,000 से अधिक आर्किड प्रजातियों में से 600 से भी अधिक केवल अरुणाचल प्रदेश में पाई जाती हैं।35.विश्व में 22 हजार टन पुदीने के तेल का उत्पादन होता है, इसमें से 19 हजार टन तेल अकेले भारत में निकाला जाता है।36.‘पाई’ की कीमत, संसार में सबसे पहले, छठवीं शताब्दी में, भारतीय गणितज्ञ बुधायन द्वारा पता की गई थी.37.आयुर्वेद मानव जाति के लिए ज्ञात सबसे ,आरंभिक चिकित्सा शाखा है। इस शाखा विज्ञान के जनक माने जाने वाले महर्षि चरक ने 2500 वर्ष पहले आयुर्वेद का समेकन किया था।38.अमेरिका में 12% वैज्ञानिक भारतीय हैं और नासा में 36% वैज्ञानिक भारतीय हैं. 39.भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र और विश्व का सातवां सबसे बड़ा देश, तथा प्राचीन सभ्यताओं में से एक है।40.शल्य चिकित्सा सर्जरी का प्रारंभ 2600 वर्ष पूर्व भारत में हुआ था। अनेक प्राचीन ग्रंथों में गुरु सुश्रुत और उनकी टीम द्वारा आँखों को मोतियाबिंदु से मुक्त करने, प्रसव कराने, हड्डियाँ जोड़ने, पथरी निकालने, अंगों को सुंदर बनाने और मस्तिष्क की चिकित्सा में शल्य क्रिया करने के उल्लेख मिलते हैं।
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