स्वाइन फ्लू:
सर्दी-जुकाम-खाँसी, बोलने सुनने में मामूली बीमारियाँ हैं, लेकिन जब इनपर सवार होकर छद्म वेश में जानलेवा विषाणु सांसारिक जीवों में प्रवेश करते हैं, तब स्थिति बेकाबू भी हो सकती है। सर्दी और खाँसी जैसी मामूली बीमारी, व्यक्ति विशेष के अनुसार प्रभाव करती है।
इंफ्लूऐंजा फ्लू का विषाणु- वायरस सारे संसार में फैला हुआ है और एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में प्रवेश कर फैलता जाता है। यह ना सिर्फ सामाजिक और वाणिज्यिक रूप से असर डालता है, वरन सैकड़ों हजार की संख्या में मानव जीवन की बलि ले लेता है, याद करें 2009 में फैली स्वाइन फ्लू की महामारी। परिणामस्वरूप इंन्फ्लूऐंजा अब लगभग हर देश की सरकार और स्वास्थ्य विभाग की प्राथमिकता सूचि में है।
यह एक कदाचित कम ही फैलने वाला विषाणु-वायरस है, जो मनुष्यों और शूकरों में फैलता है। इस वायरस को और आगे विभागित नहीं किया गया है और अभी यह महामारी के रूप् में सामने नहीं आया है।
स्वाइन फ्लू :
यदि किसी व्यक्ति को सर्दी-खांसी है और उसके साथ उसे सांस लेने में भी तकलीफ हो रही है या 101 डिग्री से ज़्यादा का ज्वर- बुखार है तो इसे बिलकुल नज़रंदाज नहीं करना चाहिए। क्योंकि ये लक्षण स्वाइनफ़्लू <
उनके मुताबिक़ हर बार सर्दी-खांसी स्वाइन फ़्लू का संकेत नहीं देती, फिर भी सर्दी-खांसी होने पर अतिरिक्त सावधानी रखना बेहद ज़रूरी है। क्योंकि उसके साथ यदि सांस लेने में तकलीफ होने लगे या तेज़ बुखार आ जाए तो तुरंत किसी चिकित्सालय-अस्पताल में जाकर जांच कराना चाहिए, क्योंकि ज़्यादातर मामलों में ऐसी स्थिति स्वाइन फ़्लू का संकेत देती है और इसका का इलाज जितनी जल्दी शुरू किया जाए इससे बचने की संभावनाएं उतनी ज़्यादा बढ़ जाती हैं। ऐसी स्थिति में आराम करने के साथ पर्याप्त मात्रा में पानी पीना चाहिए, ताकि निर्जलीकरण- डी-हाइड्रेशन ना हो। वर्ना रोग बढ़ सकता है।
आयुर्वेद देता है बचने के नुस्खे :
आयुर्वेदिक चिकित्सक ड़ाॅ लोकेश जोशी के मुताबिक़ तुलसी के पत्ते, कपूर और इलायची का उपयोग स्वाइन फ़्लू के वायरस से प्राथमिक बचाव देता है। इन तीनों को समान मात्रा में लेकर पीस कर एक छोटी पुड़िया बनाकर अपने साथ रख लेना चाहिए। समय-समय पर इसकी सुगंध-खूशबू सूंघने से शरीर में इस वायरस का मुकाबला करने की शक्ति बढ़ जाती है।
ऐसे बचेंः
- जहां तक हो, भीड़ से बचकर रहें।
- सेनेटाइजर का उपयोग करना बेहतर होगा।
- ज्यादा लोगों से मिल रहे हैं तो थोड़ी-थोड़ी देर में हाथ जरूर धोएं।
- घर में किसी को सर्दी-खांसी-जुकाम हो तो उसे अलग रखें और खांसते समय मुंह पर रूमाल ज़रूर रखें।
स्वाइन फ्लू ने सारे देश में दहशत मचा रखी है। अचानक यह महामारी सुरसा की तरह फैली और देखते ही देखते महानगरों को अपनी चपेट में ले लिया। आमतौर पर पशुओं और पालतू जानवरों को होने वाले वायरस के हमले कभी इंसानों तक नहीं पहुँचते। इसकी वजह यह है कि जीव विज्ञान की दृष्टि से इंसानों और जानवरों की बनावट में फर्क है। अभी देखा यह गया था कि जो लोग सूअर पालन के व्यवसाय में हैं और लंबे समय तक सूअरों के संपर्क में रहते हैं, उन्हें स्वाइन फ्लू होने का जोखिम अधिक रहता है।
मध्य 20वीं सदी से अब तक के चिकित्सा इतिहास में केवल 50 प्रकरण- केसेस ही ऐसे हैं जिनमें वायरस सूअरों से इंसानों तक पहुँचा हो। ध्यान में रखने योग्य यह बात है कि सूअर का माँस खाने वालों को यह वायरस नहीं लगता क्योंकि पकने के दौरान यह नष्ट हो जाता है।
क्या है लक्षणः
स्वाइन फ्लू के लक्षण भी सामान्य एन्फ्लूएंजा के लक्षणों की तरह ही होते हैं।
तीव्र ज्वर- बुखार, तेज ठंड लगना, गला खराब हो जाना, मांसपेशियों में दर्द होना, तेज सिरदर्द होना, खाँसी आना, कमजोरी महसूस करना आदि लक्षण इस बीमारी के दौरान उभरते हैं। इंसानों में जो स्वाइन फ्लू का संक्रमण हुआ है, वह तीन अलग-अलग तरह के विषाणु के सम्मिश्रण से उपजा है। फिलहाल इस वायरस का उद्गम अज्ञात हैं।
स्वाइन फ्लू के लक्षण भी सामान्य एन्फ्लूएंजा के लक्षणों की तरह ही होते हैं।
तीव्र ज्वर- बुखार, तेज ठंड लगना, गला खराब हो जाना, मांसपेशियों में दर्द होना, तेज सिरदर्द होना, खाँसी आना, कमजोरी महसूस करना आदि लक्षण इस बीमारी के दौरान उभरते हैं। इंसानों में जो स्वाइन फ्लू का संक्रमण हुआ है, वह तीन अलग-अलग तरह के विषाणु के सम्मिश्रण से उपजा है। फिलहाल इस वायरस का उद्गम अज्ञात हैं।
वर्ल्ड ऑर्गनाइजेशन फॉर एनिमल हैल्थ ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि यह वायरस अब केवल शूकरों तक सीमित नहीं है, इसने इंसानों के बीच फैलने की शक्ति प्राप्त कर ली है। एन्फ्लूएंजा विषाणु-वायरस की खासियत यह है कि यह लगातार अपना स्वरूप बदलता रहता है। इसकी वजह से यह उन प्रतिरोधक- एंटीबॉडीज को भी छका देता है जो पहली बार हुए एन्फ्लूएंजा के दौरान विकसित हुई थीं। यही वजह है कि एन्फ्लूएंजा के टीका वैक्सीन का भी इस विषाणु पर असर नहीं होता।
क्या है खतरा ः
सन् 1930 में पहली बार एच1एन1 वायरस के सामने आने के बाद से 1998 तक इस वायरस के स्वरूप में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। 1998 और 2002 के बीच इस वायरस के तीन विभिन्न स्वरूप सामने आए।
इनके भी 5 अलग-अलग आनुवांषिक जीनोटाइप थे।
मानव जाति के लिए जो सबसे बड़ा जोखिम सामने है वह है स्वाइन एन्फ्लूएंजा वायरस के म्यूटेट करने का जो कि स्पेनिश फ्लू की तरह घातक भी हो सकता है।
चूँकि यह इंसानों के बीच फैलता है इसलिए सारे विश्व के इसकी चपेट में आने का खतरा है।
इनके भी 5 अलग-अलग आनुवांषिक जीनोटाइप थे।
मानव जाति के लिए जो सबसे बड़ा जोखिम सामने है वह है स्वाइन एन्फ्लूएंजा वायरस के म्यूटेट करने का जो कि स्पेनिश फ्लू की तरह घातक भी हो सकता है।
चूँकि यह इंसानों के बीच फैलता है इसलिए सारे विश्व के इसकी चपेट में आने का खतरा है।
कैसे बचेंगे ः
शूकरों को एविएन और ह्यूमन एन्फ्लूएंजा श्रृंखला- स्ट्रेन दोनों का संक्रमण हो सकता है। इसलिए उसके शरीर में एंटीजेनिक शिफ्ट के कारण नए एन्फ्लूएंजा स्ट्रेन का जन्म हो सकता है। किसी भी एन्फ्लूएंजा के विषाणु का मानवों में संक्रमण श्वांस प्रणाली के माध्यम से होता है। इस विषाणु से संक्रमित व्यक्ति का खाँसना और छींकना या ऐसे उपकरणों का स्पर्श करना जो दूसरों के संपर्क में भी आता है, उन्हें भी संक्रमित कर सकता है।
जो संक्रमित नहीं वे भी दरवाजों के हैंडल, टेलीफोन के रिसीवर या टॉयलेट के नल के स्पर्श के बाद स्वयं की नाक पर हाथ लगाने भर से संक्रमित हो सकते हैं।
जो संक्रमित नहीं वे भी दरवाजों के हैंडल, टेलीफोन के रिसीवर या टॉयलेट के नल के स्पर्श के बाद स्वयं की नाक पर हाथ लगाने भर से संक्रमित हो सकते हैं।
क्या है सावधानियाँ
सामान्य एन्फ्लूएंजा के दौरान रखी जाने वाली सभी सावधानियाँ इस विषाणु के संक्रमण के दौरान भी रखी जानी चाहिए।
बार-बार अपने हाथों को साबुन या ऐसे सॉल्यूशन से धोना जरूरी होता है जो विषाणु का खात्मा कर देते हैं।
नाक और मुँह को हमेशा मॉस्क पहन कर ढँकना जरूरी होता है।
इसके अलावा जब जरूरत हो तभी आम जगहों पर जाना चाहिए ताकि संक्रमण ना फैल सके।
क्या है इलाजः
संक्रमण के लक्षण प्रकट होने के दो दिन के अंदर ही एंटीवायरल ड्रग देना जरूरी होता है। इससे एक तो मरीज को राहत मिल जाती है तथा बीमारी की तीव्रता भी कम हो जाती है। तत्काल किसी अस्पताल में मरीज को भर्ती कर दें ताकि पैलिएटिव केअर शुरू हो जाए और तरल पदार्थों की आपूर्ति भी पर्याप्त मात्रा में होती रह सकें। अधिकांश मामलों में एंटीवायरल ड्रग तथा अस्पताल में भर्ती करने पर सफलतापूर्वक इलाज किया जा सकता है।
कड़वा चिरायताः
मलेरिया, डेंगू या स्वाइन फ्लू सबकी छुट्टी कर देगा कड़वा चिरायता...
चिरायते का नाम अधिकांश लोगों ने सुन रखा होगा। बरसों से हमारी दादी-नानी कड़वे चिरायते से बीमारियों को दूर भगाती रही है। असल में यह कड़वा चिरायता एक प्रकार की जड़ी-बूटी है जो कुनैन की गोली से अधिक प्रभावी होती है। एक प्रकार से यह एक देहाती घरेलू नुस्खा है। पहले इस चिरायते को घर में सुखा कर बनाया जाता था लेकिन आजकल यह बाजार में कुटकी चिरायते के नाम से भी मिलता है। लेकिन अधिक कारगर तो घर पर बना हुआ ताजा और विशुद्ध चिरायता ही अधिक कारगर होता है।
चिरायता बनाने की विधिः
100 ग्राम सूखी तुलसी के पत्ते का चूर्ण, 100 ग्राम नीम की सूखी पत्तियों का चूर्ण, 100 ग्राम सूखे चिरायते का चूर्ण लीजिए। इन तीनों को समान मात्रा में मिलाकर एक बड़े डिब्बे में भर कर रख लीजिए। यह तैयार चूर्ण मलेरिया या अन्य बुखार होने की स्थिति में दिन में तीन बार दूध से सेवन करें।
मात्र दो दिन में आश्चर्यजनक लाभ होगा।
मात्र दो दिन में आश्चर्यजनक लाभ होगा।
कारगर एंटीबॉयोटिकः
बुखार ना होने की स्थिति में भी यदि इसका एक चम्मच सेवन प्रतिदिन करें तो यह चूर्ण किसी भी प्रकार की बीमारी चाहे वह स्वाइन फ्लू ही क्यों ना हो, उसे शरीर से दूर रखता है। इसके सेवन से शरीर के सारे कीटाणु मर जाते हैं। यह रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में भी सहायक है। इसके सेवन से खून साफ होता है तथा धमनियों में रक्त प्रवाह सुचारू रूप से संचालित होता है।
* अगर आप यह चूर्ण ना बना पाये तो अच्युताय संजीवनी टेबलेट कि २ गोलियाँ सुबह खाली पेट चूसकर खाएं । यह गोली व्यक्ति को शक्तिशाली, ओजस्वी, तेजस्वी व मेधावी बनाती है । इसमें सभी रोगों का प्रतिकार करने तथा उन्हें नष्ट करने की प्रचंड क्षमता है । यह श्रेष्ठ रसायन द्रव्यों से संपन्न होने से सप्तधातु व पंचज्ञानेन्द्रियों को दृढ बनाकर वृद्धावस्था को दूर रखती है । ह्रदय , मस्तिष्क व पाचन संस्थान को विशेष बल प्रदान करती है ।
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विस्तारपूर्वक जानने के लिएः
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