बैक्टीरिया
एक-कोशिकी सूक्ष्मजीवों का एक विशाल वर्ग।
इन केन्द्रकहीन और पर्णहरितहीन जीवों में जनन-क्रिया असूत्री विभाजन द्वारा होती है।
केन्द्रक के स्थान पर क्रोमोटिन पदार्थ व्याप्त रहता है। जीवाणुओं का वर्गीकरण आकृति के अनुसार किया जाता है।
उदाहरण-
1. दण्डाणु (बैसिलाइ) – दंड जैसे,
2. गोलाणु (कोक्काई)-बिन्दू जैसे,
3. सर्पिलाणु (स्पिरिलाइ) – लहरदार आदि।
http://hindi.indiawaterportal.org/bacteria-hindi-1एक-कोशिकी सूक्ष्मजीवों का एक विशाल वर्ग।
इन केन्द्रकहीन और पर्णहरितहीन जीवों में जनन-क्रिया असूत्री विभाजन द्वारा होती है।
केन्द्रक के स्थान पर क्रोमोटिन पदार्थ व्याप्त रहता है। जीवाणुओं का वर्गीकरण आकृति के अनुसार किया जाता है।
उदाहरण-
1. दण्डाणु (बैसिलाइ) – दंड जैसे,
2. गोलाणु (कोक्काई)-बिन्दू जैसे,
3. सर्पिलाणु (स्पिरिलाइ) – लहरदार आदि।
बैक्टीरियोफेज़
पुरातन काल से अनेक नदियों के पानी में
असाध्य रोगों जैसे कि कुष्ठ रोग आदि को ठीक करने की चमत्कारिक शक्ति की किवदंतियाँ
प्रचलित हैं।
सन् 1896 में, अर्नेस्ट हेनकिन ने रिपोर्ट दी कि गंगा और यमुना का पानी कॉलरा रोग के प्रति एंटी बैक्टीरीयल है तथा यह गुण अति सूक्ष्म पोर्सिलीन फिल्टर से छानने पर भी विद्यमान रहता है।
सन् 1915 में ब्रिटिश बैक्टिरियोलॉजिस्ट फ्रेडरिक ट्वोर्ट जो ब्राउन इंस्टीट्यूट, लन्दन में सुपरिटेण्डेंट थे, ने एक सूक्ष्म एजेण्ट की खोज की जो बैक्टीरिया को संक्रमित करके उन्हें खत्म करता है। उन्हें विश्वास था कि वह या तो बैक्टिरिया के जीवन चक्र का एक चरण है, या बैक्टीरिया द्वारा स्वतः उत्पादित एन्ज़ाईम अथवा एक विषाणु जो बैक्टीरिया द्वारा पोषित होकर बैक्टीरिया को ही समाप्त कर रहा है।
द्वितीय विश्वयुद्ध और पैसे की कमी से थ्वार्ट का रूका हुआ काम पेरिस के पाश्चर इंस्टिट्यूट में पूरा हुआ, फेलिक्स हर्ले के हाथों, जो वहाँ एक फ्रेंच केनेडियन माइक्रोबायोलाजिस्ट थे। तीन दिसम्बर 1917 को उन्होने पेचिश के कीटाणुओं का एक विरोधी जीव खोजा लिया जो सूक्ष्म, अदृश्य था। हर्ले के सामने कोई संशय नहीं था, कि वह बैक्टीरिया पर अति सूक्ष्म वायरस परजीवी था जिसे उन्होंने बैक्टीरियोफेज़ या जीवाणुभक्षी का नाम दिया।
हर्ले ने अथक मेहनत करके अपनी फेज थ्योरी विश्व के सामने पेश की जो एक पेचिश के मरीज़ की मदद से अस्तित्व में आयी। यह रोगी बैक्टीरियोफेज़ की मदद से स्वस्थ हुआ, और इसका सूक्ष्म विस्तृत अध्ययन ही इस थ्योरी का जनक है।
सन् 1896 में, अर्नेस्ट हेनकिन ने रिपोर्ट दी कि गंगा और यमुना का पानी कॉलरा रोग के प्रति एंटी बैक्टीरीयल है तथा यह गुण अति सूक्ष्म पोर्सिलीन फिल्टर से छानने पर भी विद्यमान रहता है।
सन् 1915 में ब्रिटिश बैक्टिरियोलॉजिस्ट फ्रेडरिक ट्वोर्ट जो ब्राउन इंस्टीट्यूट, लन्दन में सुपरिटेण्डेंट थे, ने एक सूक्ष्म एजेण्ट की खोज की जो बैक्टीरिया को संक्रमित करके उन्हें खत्म करता है। उन्हें विश्वास था कि वह या तो बैक्टिरिया के जीवन चक्र का एक चरण है, या बैक्टीरिया द्वारा स्वतः उत्पादित एन्ज़ाईम अथवा एक विषाणु जो बैक्टीरिया द्वारा पोषित होकर बैक्टीरिया को ही समाप्त कर रहा है।
द्वितीय विश्वयुद्ध और पैसे की कमी से थ्वार्ट का रूका हुआ काम पेरिस के पाश्चर इंस्टिट्यूट में पूरा हुआ, फेलिक्स हर्ले के हाथों, जो वहाँ एक फ्रेंच केनेडियन माइक्रोबायोलाजिस्ट थे। तीन दिसम्बर 1917 को उन्होने पेचिश के कीटाणुओं का एक विरोधी जीव खोजा लिया जो सूक्ष्म, अदृश्य था। हर्ले के सामने कोई संशय नहीं था, कि वह बैक्टीरिया पर अति सूक्ष्म वायरस परजीवी था जिसे उन्होंने बैक्टीरियोफेज़ या जीवाणुभक्षी का नाम दिया।
हर्ले ने अथक मेहनत करके अपनी फेज थ्योरी विश्व के सामने पेश की जो एक पेचिश के मरीज़ की मदद से अस्तित्व में आयी। यह रोगी बैक्टीरियोफेज़ की मदद से स्वस्थ हुआ, और इसका सूक्ष्म विस्तृत अध्ययन ही इस थ्योरी का जनक है।
हर्ले ने
शीघ्र ही जान लिया कि बैक्टीरियोफेज़ हर उस जगह पाये जाते हैं जहाँ बैक्टीरिया
फलते फूलते हैं। गटर, नालियाँ, नदियाँ जो मैले पानी को ग्रहण करती हैं, जिनमें रोगियों
का मल मूत्र भी होता है। अंततः पवित्र नदियों के पानी की रोग निरोधक क्षमता का प्रमाण
मिल ही गया।
एण्टीबायोटिक्स, बैक्टीरिया जनित संक्रमण के इलाज में इस्तेमाल होते हैं। बैक्टीरिया सूक्ष्म जीवाणु होते हैं और कुछ बैक्टीरिया मनुष्यों तथा प्राणियों में बीमारी का कारण बन जाते हैं। बैक्टीरिया शब्द बैक्टीरियम का बहुवचन शब्द है।
ऐण्टीबायोटिक
ऐण्टीबायोटिक जिन्हें एण्टीबैक्टीरियल
भी कहा जाता है, वह औषधियाँ हैं जो बैक्टीरिया या जीवाणुओं का अंत करतीं हैं अथवा
उनके बढ़ने पर अंकुश लगाती हैं।
सिफलिस, तपेदिक या क्षय रोग, सल्मोनेला तथा कुछ तरह के मस्तिष्क ज्वर बैक्टीरिया जनित रोग हैं। मनुष्यों के लिए कुछ बैक्टीरिया हानि कारक हैं, तो कुछ लाभदायक भी हैं।
एण्टीबायोटिक्स क्या हैं?
एण्टीबायोटिक्स
- वह ताकतवर
औषधि है जो रोगाणु संक्रमण, बैक्टीरियल इन्फेक्शन से लड़तीं है, और निर्धारित
मात्रा व तरीके से सेवन करने पर जीवनरक्षा करतीं हैं। एण्टीबायोटिक्स रोगाणुओं
का प्रजनन रोकतीं हैं अथवा उन्हें खत्म कर देती हैं। इसके पश्चात हमारे शरीर की
प्राकृतिक प्रतिरोधक शक्ति मोर्चा सम्हाल लेती है।
सामान्यतः रोगाणुओं के संक्रमण और प्रजनन से उभरे
लक्षणों के पहले ही हमारा रोग प्रतिरोधक तंत्र उन्हें खत्म कर देता है। हमारे शरीर
की विशेष श्वेत रक्त कोशिकाऐं रोगाणुओं पर हमला कर उन्हें खत्म कर देती हैं। यहाँ
रोग के लक्षणों के उभरने पर भी प्रतिरोधकता संक्रमण से जूझ कर उसे काबू में कर
लेती है। लेकिन कुछ विशेष प्रकरणों में अति हो जाती है तब सहायता की आवश्यकता होती
है- एण्टीबायोटिक्स की।
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