हेपॅटाइटिस सी
हेपॅटाइटिस सी यकृत या लीवर
की एक बीमारी है जो हेपॅटाइटिस सी वायरस की वजह से होती है। यह वायरस घातक
और स्थायी संक्रमण दे सकता है जिसकी वजह से कुछ सप्ताह तक चलने वाली मामूली बीमारी
से लेकर जीवन भर का गंभीर रोग हो सकता है।
हेपॅटाइटिस सी वायरस रक्त जनित वायरस होता है और यह
आमतौर पर असुरक्षित इंजेक्शन, कुछ अस्पतालों में चिकित्सीय उपकरणों की अपर्याप्तता,
रोगाणुनाशक और खुले रक्त (अनस्क्रीन्ड ब्लड) और रक्त उत्पाद की वजह से
फैलता है।
हेपॅटाइटिस संक्रमण बड़ी समस्या बनकर सामने आ रहा है। वजह यह कि लोग इसके बारे में अधिक नहीं जानते। इसलिए परीक्षण आदि से दूर रहते हैं। साथ ही, बहुत से मामलों में इसके लक्षण लंबे अंतराल के बाद नजर आते हैं। वैक्सीन यानी टीका लगवा लेने से भी न सिर्फ संक्रमण का खतरा कम होता है, बल्कि इस संक्रमण के महँगे इलाज से भी बचा जा सकता है।
क्या होता है हेपॅटाइटिस
हेपॅटाइटिस वायरस यों तो पाँच तरह
का होता है। ए, बी, सी, डी और ई, लेकिन डी कॉमन नहीं होता और बहुत
ही गिने चुने मामलों में नजर आता है। इसे डेल्टा वायरस कहा जाता है। यह बी
के साथ ही संक्रमण करता है, वह भी गिने चुने मामलों में। हेपॅटाइटिस ए, बी, सी और ई को ही मुख्य वायरस माना
जाता है। मोटे तौर पर लक्षणों और नुकसान के आधार पर हेपॅटाइटिस ए और ई व बी और सी
को एक साथ रखा जा सकता है।
दोनों प्रकार का वायरस पेयजल और भोजन
के जरिए शरीर में आता है। यह वायरस जानलेवा नहीं है।
कारण-दूषित भोजन करने या दूषित पानी पीने से।
लक्षण- उलटी, बुखार और पीलिया। ये
लक्षण करीब चार हफ्ते तक चलते हैं। इसके बाद रोगी की हालत में सुधार होने लगता है।
इलाज- इस
संक्रमण का कोई विशेष इलाज नहीं होता। बुखार या दूसरे लक्षणों का उपचार किया जाता
है, और मरीज को पूरा आराम करना होता है।
बी और सी वायरस का संक्रमण होने
के करीब डेढ़ से दो महीने बाद इसके लक्षण नजर आते हैं। जिनको बचपन में यह इन्फेक्शन होता है, ज्यादातर उन्हीं में बड़ी उम्र
में दीर्घकालीन हेपॅटाइटिस होता है।
ध्यान रहे कि मरीज की छींक या
खांसी,
उसके साथ खाने या पानी पीने, हाथ मिलाने या
गले लगने, बच्चे को पीड़ित मां का दूध पिलाने आदि से हेपॅटाईटिस नहीं
फैलता है।
लक्षण: भूख न
लगना,
वजन कम होना, पीलिया, बुखार,
कमजोरी, उलटी, पेट में
पानी भर जाना, खून की उलटियां होना, रंग
काला होने लगना, पेशाब का रंग गहरा होना आदि। स्मोकिंग
करनेवाले लोगों को स्मोकिंग से विरक्ति हो सकती है। शुरुआत में कोई लक्षण नजर नहीं
आता। अगर लगातार पीलिया रहे, खून की उलटियां हों, रंग काला पड़ने लगे, वजन बहुत कम हो जाए, पाखाने में खून आए तो समझना चाहिए कि लिवर पर असर आ गया है।
हानी :
हेपटाइटिस बी और सी में लिवर फाइब्रोसिस (लिवर का सख्त होना) और लिवर सिरोसिस
(लिवर का सिकुड़ जाना) होने की आशंका बहुत ज्यादा होती है। फाइब्रोसिस बहुत बढ़
जाए तो सिरोसिस हो जाता है। ऐसा होने पर लिवर अपना काम सही से नहीं कर पाता।
सिरोसिस के बहुत-से मामले इलाज न होने पर कैंसर में बदल जाते हैं, बल्कि कैंसर के करीब 90 % मरीज सिरोसिस वाले ही होते
हैं। मोटे तौर पर हेपॅटाइटिस बी के करीब 20 % और सी के करीब 4 % मरीजों
में कैंसर की आशंका होती है। कई बार इलाज के बाद भी कैंसर की आशंका बनी रहती हैं,
खासकर हेपॅटाइटिस बी में क्योंकि ज्यादातर मामलों में इसका वायरस
शरीर में बना रहता है। ऐसा विषाणु के कोशिका के नाभिक या न्यूक्लियस से
जुड़ने पर होता है। ऐसे में कभी-कभी रोगी को पूरी जिंदगी दवा खानी पड़ सकती है।
डॉक्टर जांच के बाद ही बता सकते हैं कि इलाज कितना लंबा चलेगा।
नोट :
अल्कोहल या शराब बहुत-से मामलों में हेपॅटाइटिस की वजह बनती है। अगर हेपॅटाइटिस न
हो तो भी शराब की वजह से सिरोसिस हो सकता है। हेपटाइटिस बी या सी का मरीज शराब
पीता है तो लिवर को और नुकसान पहुंचता है। ऐसे में शराब से दूरी हेपॅटाइटिस की
आशंका कम कर देती है। कम-से-कम यह ऐसी वजह है, जिसे आप रोक सकते हैं।
गर्भावस्था और हेपॅटाइटिस
मां को अगर हेपॅटाइटिस है तो
बच्चे के भी इससे पीड़ित होने की आशंका बढ़ जाती है। गर्भावस्था के दौरान सही इलाज
न हो तो महिला को रक्तस्राव हो सकता है और बच्चे व माँ, दोनों की जान जा सकती है। अगर माँ को पहले से मालूम है कि उसे हेपॅटाइटिस
है तो उसे डॉक्टर को जरूर बताना चाहिए। डॉक्टर दवा देंगे, जिससे
बच्चे में वायरस जाने की आशंका कम हो जाती हैं। जिन महिलाओं को हेपॅटाइटिस बी का
टीका लगा है, उन्हें भी गर्भावस्था के दौरान जाँच करानी
चाहिए क्योंकि कई बार टीका फेल भी हो जाता है। जन्म के बाद भी बच्चे को टीका लगाकर
बीमारी से बचाया जा सकता है।
कैसे बचें हेपॅटाइटिस से
हेपॅटाइटिस ए और ई से बचाव के लिए
जरूरी है कि हम शुद्ध भोजन करें और स्वच्छ पेयजल पिऐं।
हेपॅटाइटिस बी और सी से बचाव के
लिए निम्न बातों का ध्यान रखें :
ऐसे हॉस्पिटल या ब्लड बैंक
से ही खून लें,
जहां उचित तरीके से परीक्षण करने के बाद ही रक्तदान लिया जाता हो।
टैटू से
बचें। इन्फेक्टेड या संक्रमित सूई हेपॅटाइटिस की वजह बन सकती है।
दाँत का इलाज अच्छे हॉस्पिटल से
कराऐं,
जहां इक्वेपमेंट्स या उपकरणों की साफ-सफाई का ध्यान रखा जाता
है।
शराब से बचें। हेपॅटाइटिस होने के
बाद तो बिल्कुल न पिएं। अगर शराब पीते हैं तो पैरासिटामोल (क्रोसीन आदि) की
ज्यादा डोज लेने से बचें।
हेपॅटाइटिस बी के टीके लगते हैं
और काफी असरदार होते हैं। विशेषज्ञ इन्हें 95 % सफल मानते हैं। इसमें
तीन डोज लेनी होती हैं। पहला इंजेक्शन लगने के बाद दूसरा अगले महीने और तीसरा छठे
महीने लगना जरूरी है। एक हफ्ते से ज्यादा की देरी होने पर पहली खुराक का असर खत्म
हो जाता है और तब तीनों टीकों को फिर से लगवाना होता हैं। तीन टीकों का कोर्स होता
है, जिसकी कीमत सरकारी अस्पतालों में 200 रुपये और प्राइवेट
अस्पतालों में 1000 रुपये तक हो सकती है।
हेपॅटाइटिस सी और ई के टीके नहीं
हैं। हेपॅटाइटिस ई के टीके पर अभी अनुसंधान चल रहा है। हेपॅटाइटिस ए के लिए टीका
लगाया जाता है लेकिन यह डब्ल्यूएचओ विश्व स्वास्थ्य संगठन की टीकाकरण सूचि में
नहीं है क्योंकि यह ज्यादा नुकसानदेह नहीं होता। कम ही मामलों में टीका लगाया जाता
है।
भोजन, आहार में
सावधानी
सभी तरह के हेपॅटाइटिस संक्रमण में
आहार का कोई परहेज नहीं होता। बस, सिरोसिस
होने पर नमक कम खाना बेहतर होता है। साथ ही बहुत तला-भुना भोजन नहीं करना चाहिए।
इससे लिवर, यकृत पर दबाव पड़ता है। प्रोटीनयुक्त भोजन जैसे पनीर, दूध, सोयाबीन, मछली आदि बेहतर
है। साथ ही, ऐसा खाना खाऐं, जो सुपाच्य
हो। खिचड़ी, दलिया, चावल, रोटी, मक्का, सूप, फल और सब्जियां खाऐं। वायुकारक चीजें जैसे राजमा, छोले
आदि कम खाऐं। दही ले सकते हैं, लेकिन कम मात्रा में। छाछ ज्यादा
बेहतर है।
कोई भी दवा
डॉक्टर की सलाह के बिना न खाएं।
आयुर्वेद
अगर हेपॅटाइटिस प्रारंभिक अवस्था
में है तो आयुर्वेदिक दवाओं से इलाज किया जा सकता है। बीमारी बढ़ने पर बेशक मॉडर्न
मेडिसिन का सहारा लेना ही बेहतर है लेकिन आयुर्वेदिक विशेषज्ञों का कहना है कि
आधुनिक औषधि के साथ अगर आयुर्वेदिक इलाज भी किया जाए तो मरीज को बेहतर जिंदगी मिल
सकती है। उदाहरणार्थ उसकी भूख बढ़ेगी, वजन कम नहीं होगा आदि।
अगर मरीज को पीलिया है तो उसे
आरोग्यवधिर्नी वटी दे सकते हैं। 500 मिग्रा की गोली दिन में तीन बार गुनगुने पानी
से दी जाती है। पुनर्नवारिष्ट 25 मिली दिन में दो बार खाना खाने के बाद इतने ही
पानी में मिलाकर देनी चाहिए। जरूरत पड़ने पर या बीमारी बढ़ने पर दिन में दो बार
रोहितकारिष्ट (25 मिली) या दारव्यादि क्वाथ दिया जाता है। दारव्यादि क्वाथ तैयार
करने के लिए 160 मिली पानी में 10 ग्राम दारव्यादि मिलाएं और थोड़ी देर उबाल कर
छान लें।
एलोवेरा (घृतकुमारी) का गूदा
निकालकर थोड़ी काली मिर्च मिलाकर सुबह-शाम एक चम्मच लें। दिन में दो बार 25 मिली
कुमारीआसव इतने ही पानी में मिलाकर ले सकते हैं।
भृंगराज के पौधे का 10 मिली रस
निकालकर रोजाना ले सकते हैं।
कटुकि या कुटकी चूर्ण रोजाना 1 से
3 ग्राम तक ले सकते हैं। यह काफी कड़वा होता है।
भूम्यामल्कि या भूईं आंवला की कुछ
पत्तियों को पीसकर जूस निकाल कर ले सकते हैं।
दिन में दो-तीन बार तीन ग्राम
हरड़ का पाउडर ले सकते हैं। इसके अलावा कालमेघ, पीपली आदि भी फायदेमंद
हैं।
खाने में हल्दी, काली मिर्च, लौंग का भरपूर इस्तेमाल करें। लाल मिर्च
बंद कर दें।
ऐसा खाना खाएं, जो आसानी से पच जाए। इससे लिवर पर जोर कम पड़ेगा।
भोजन में बहुत तेल या मिर्च मसाला
न खाऐं।
गर्म तासीर वाला खाना न खाऐं।
बहुत गर्म पानी से न नहाऐं।
नोट: आयुर्वेदिक एक्सपर्ट से सलाह
के बाद ही दवा लें। वह आपको बताएगा कि बीमारी के अनुसार आपको कौन-सी दवा सूट करेगी।
योग
सीधे बैठ जाएं और पालथी मार लें।
हाथों को पैरों पर रख लें और बहुत धीरे-धीरे सांस बाहर निकालें ताकि पेट अंदर की
तरफ जाए। फिर सांस भरें और पेट को आराम दें। यह अभ्यास कपालभाँति की तरह होता है
लेकिन ध्यान रखें कि यह कपालभाँति नहीं है इसलिए इसे बहुत धीरे-धीरे करें। 15-20
बार करें। फिर आराम करें और फिर से अभ्यास करें। ऐसे दो सेट बैठकर करने के बाद दो
सेट लेटकर करें। लेटकर पैरों को मोड़ लें और यह अभ्यास करें। यह लिवर को मजबूत
बनाता है।
एक पैर से उत्तानपादासन कर सकते
हैं। कमर के बल लेट जाएं और एक पैर को मोड़कर दूसरे पैर को सीधा फैलाकर ऊपर उठाएं।
फिर पैर बदलकर करें। यह खून के दौर को पेट की तरफ बढ़ाएगा और लीवर को फिर से ताकत
देगा।
धीरे-धीरे कटिचक्रासन करें। दोनों
पैरों को मोड़कर एक साथ बाँयीं ओर में ले जाएं और गर्दन को दाँयीं ओर में ले जाऐं।
दोनों तरफ से दो-दो बार करें।
वज्रासन करें। घुटने मोड़कर
बैठें। यह पाचन तंत्र को ताकत देगा।
अनुलोम-विलोम प्राणायाम करें।
डीप ब्रीदिंग करें।
नोट : अगर बीमारी बढ़ गई है तो
पेट पर दबाव डालने या थकानेवाले अभ्यास बिल्कुल न करें। तब सिर्फ प्राणायाम करें।
ध्यान दें
पीलिया होने पर आमतौर पर लोग
गन्ने का रस पीने और मूली खाने की सलाह देते हैं। कुछ लोग हल्दी खाने तो कुछ
छोड़ने की सलाह देते हैं। ये सब गलतफहमियां हैं। तमाम मेडिकल एक्सपर्ट इनसे
दूर रहने की सलाह देते हैं क्योंकि खुला और गंदा गन्ने का रस पीने से बीमारी के
बढ़ने की आशंका होती है।
पीलिया या जॉन्डिस अपने आप में कोई
बीमारी नहीं है। यह लिवर की बीमारी का लक्षण है। किसी भी तरह के हेपॅटाइटिस में
पीलिया हो सकता है। इसी तरह लिवर का बढ़ना भी हेपॅटाइटिस या लिवर की दूसरी
बीमारियों का लक्षण हो सकता है।
इलाज के दौरान कोई भी दवा लेने से
पहले डॉक्टर से जरूर पूछें। कुछ दवाऐं लिवर पर निर्भर करती हैं और अगर लिवर ठीक से
काम नहीं कर रहा है तो इन दवाओं से मेटाबॉलिजम या चयापचय में भी कुछ गड़बड़
हो सकती है।
शराब पीना बिल्कुल बंद कर दें।
पौष्टिकता से भरपूर खाना खाऐं, खासकर प्रोटीन से भरपूर। धीरज रखें, शरीर में ताकत
लौटने में वक्त लग सकता है।
तेज और भारी एक्सरसाइज न करें, जब तक कि डॉक्टर सलाह न दें।
ऐसा कोई भी काम न करें, जिससे यह
दूसरों तक फैले जैसे समागम, स्वयं द्वारा वापरी गई सुई का
इस्तेमाल दूसरों को करने देना आदि।
फैक्ट्स-सच्चाई
- एचआईवी इन्फेक्शन से भी तेजी से फैलता है हेपॅटाइटिस। जहां एचआईवी के लिए 0.1 मिली संक्रमित रक्त जरूरी होता है, वहीं हेपॅटाइटिस सी 0.01 मिली और हेपॅटाइटिस बी सिर्फ 0.00001 मिली खून से हो जाता है। यानी अगर इतना-सा भी संक्रमित खून शरीर में पहुंच जाए तो हेपॅटाइटिस हो सकता है।
- जिन बच्चों में हेपॅटाइटिस बी वायरस का इन्फेक्शन हो जाता है, उनके पूरी जिंदगी इस बीमारी से पीड़ित रहने की आशंका होती है।
- हेपॅटाइटिस बी से होनेवाला लिवर कैंसर पुरुषों में कैंसर से होनेवाली मौतों में तीसरी बड़ी वजह बनता है।
- 80 फीसदी लिवर कैंसर हेपॅटाइटिस बी की वजह से होते हैं।
- हेपॅटाइटिस बी के हर 100वें मरीज की हो जाती है लिवर कैंसर से मौत।
- हेपॅटाइटिस से होनेवाली मौतों में से करीब 50 फीसदी की वजह शराब होती है।
- 25 पर्सेंट मरीजों में समस्या की शुरुआत पीलिया से होती है।
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