08/08/17

गर्भकाल तथा मद्यसेवन


मद्यपान के फलस्वरूप होने वाली भ्रूणहानि की मात्रा नए रक्त परीक्षण द्वारा मापना अब संभव
टिम न्यूमॅन
अब तक विकसित होते भ्रूण पर शराब के प्रभाव का पूर्वानुमान लगाना कठिन था, हालांकि भ्रूण पर किसी भी हानिकारक प्रभाव की पूर्वसूचना भ्रूणहानि को न्यूनतम करने में सक्षम बनाती है। अमरीका तथा यूक्रेन के अण्वेषकों द्वारा संयुक्त रूप से ऐसा रक्त परीक्षण आकल्पित किया  है जो इस कठिनाई से पार पाने में मदद करेगा।
यह तो सर्वमान्य है कि गर्भावस्था के दौरान मद्यपान अपने आप में शिशु के स्वास्थ्य हेतु खतरा लिए हुए है। इस सामान्य ज्ञान के बावजूद और क्यूंकि आधे से भी ज्यादा गर्भधारण बगैर किसी पूर्वयोजना के होते हैं, गर्भधारण के प्रारंभिक दिनों में मद्यपान देखने में आता है।
भ्रूण विषयक मद्य वर्णक्रम विकार-FASD, श्रृंखला है, भौतिक तथा मानसिक निर्बलताओं की, जो शिशु के विकास को प्रभावित कर सकती है तथा इसके दीर्घकालीन परिणाम होते हैं।

एफएसडी के लक्षण व्यक्ति के साथ भिन्न होते हैं, किन्तु भौतिक विभिन्नताओं युक्त हो सकते हैं। जैसे चेहरे में मामूली अंतर। शिशु कम वजन के हो सकते हैं और औसतन कम ऊँचाई के भी। एफएएसडी के अंतर्गत संज्ञानात्मक व्यवहार संबंधी समस्याऐं जैसे ध्यान भटकना, स्मरण शक्ति तथा वाक क्षमता में ह्वास।

ब्रिटेन तथा पश्चिमी यूरोप में माध्यमिक शाला के लगभग 2.5% बच्चे एफएएसडी से प्रभावित हैं, तथा शेष विश्व में भी कमोबेश यही स्थिति है।
मद्यपान से हुई हानी की खोज पड़ताल
चिकित्सकों की प्राथमिक समस्या है कि बच्चे में मद्यपान से हानि का स्तर मापना कठिन होता है जबतक कि बच्चा किशोर वय तक न पहुँचे।

"यह एक मुख्य समस्या है, किन्तु हम इसका पूर्ण विस्तार कदाचित न भाँप सकें, क्योंकि भौतिक रूप से  सामान्य दिखाई देने वाले जन्में शिशु हमारी दृष्टि से छूट जाते हैं, जिससे प्रकरणों को समय पर पहचानना कठिन हो जाता है।" टेक्सास एएण्डएम कॉलेज ऑफ मेडिसिन के सह वरिष्ठ लेखक प्रो. राजेश मिरांडा कहते हैं।

एक ठोस समाधान खोजने हेतु, टेक्सास एएण्डएम चिकित्सा  महाविद्यालय-कॉलेज ऑफ मेडिसिन, यूनिवर्सिटी ऑफ केलिफोर्निया-सॅन डियागो स्कूल ऑफ मेडिसिन, टैक्सास एएण्डएम कॉलेज ऑफ मेडिसिन तथा ओमिनी नेट बर्थ डिफेक्ट प्रिवेंशन प्रोग्राम-यूक्रेन के वैज्ञानिक समूहों के संयुक्त प्रयास एकत्रित किए गए।


इन सभी के संयुक्त प्रयासों से सामने आया समाधान, PLOS-1 पीएलओएस-1 में प्रकाशित किया गया।
वैज्ञानिक समूह का ध्येय एक ऐसा परीक्षण विकसित करना था जो गर्भावस्था के प्रारंभिक दिनों में गर्भस्थ भ्रूण पर मद्यपान के कुप्रभाव का विस्तार क्षेत्र मापने में सक्षम हो।
यूक्रेन के प्रसव-पूर्व देखरेख चिकित्सा केन्द्रों से अण्वेषकों ने 68 गर्भवती स्त्रियों के परिणामों का गहन अध्ययन किया। गर्भकाल की द्वितीय तथा तृतीय त्रैमासिकियों के रक्त-नमूनों के साथ गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य तथा मद्यसेवन के आँकड़े एकत्रित किए गए।
प्रारंभिक गर्भावस्था में मद्य-अनावृति या मद्यसेवन गुणसूत्र में स्थित अतिसूक्ष्म यौगिकों का परिसंचरण परिवर्तित कर देता है।
जब सभी आँकड़ों का विश्लेषण कर लिया गया, तब अण्वेषकों को माता के रक्त नमूनों में गुणसूत्र के कुछ निश्चित चिन्हों-मार्करों में महत्वपूर्ण असमानता पता चली। प्रारंभिक गर्भावस्था में मद्य-अनावृति या मद्यसेवन की वजह से गुणसूत्र के सूक्ष्म RNA अणुओं, जिन्हें माइक्रो RNA (miRNAs) कहा जाता है, के परिमाण या मात्रा में महत्वपूर्ण बदलाव दिखाई दिया।

माइक्रोRNA या miRNAs में यह बदलाव विशेषरूप से उन माताओं के गुणसूत्रों में प्राप्त हुआ जिनके शिशुओं में तंत्रिका व्यवहार या न्यूरोबिहेवियर तथा भौतिक चिन्ह विकार, उनके जीवन के प्रथम 12 महीनों में दिखाई दिए थे। प्रो. मिराण्डा कहते हैं-"कुल मिलाकर हमारे आँकड़े संकेत करते हैं कि मातृत्व प्लाविका या माता का रक्तरस, माइक्रोRNA (miRNAs), एफएएसडी FASD से ग्रस्त शिशुजन्म की, तथा शिशु संख्या का वर्गीकरण करने की भविष्यवाणी करने में मदद कर सकता है, जो कि नैदानिक परीक्षण में अत्यन्त कठिन है"
नैदानिक परीक्षण में एफएएसडी FASD अत्यन्त कठिन होने का एक कारण यह भी है कि एकसमान मद्यसेवन के बावजूद भी शिशु जन्म पर होने वाला प्रभाव बेहद अलग होता है।
"यद्यपि यह एक सामान्य सत्य है कि गर्भावस्था के दौरान मद्यपान सबसे बड़ा जोखिम प्रस्तुत करता है, शतप्रतिशत माताऐं जो मद्यपान करती हैं उन सभी की संतान स्पष्टतः FASD से संक्रमित होगी"
सह वरिष्ठ लेखक प्रो. क्रिस्टीना चेम्बर्स
एक विशिष्ट जैविक मार्कर-अंकगणक होना, जिसकी गर्भकाल की द्वितीय तथा तृतीय त्रैमासिकियों में गणना की जा सके, अजन्में शिशु के जन्मपूर्व हस्तक्षेप का औचित्य सिद्ध करने में सहायक होगा।
शिशु के जन्मपूर्व हस्तक्षेप किंचित आगे और अधिक हानि को रोकने मे सक्षम हो सके।
एफएएसडी FASD उपचार योग्य नहीं है, लेकिन पूर्व हस्तक्षेप से शिशु को लाभ हो सकता है जहां मद्यपान की मात्रा में कमी की जा सकती है, अथवा रोका जा सकता है। जैसे कि डॉ. व्लॉदिमिर वर्टेलॅकी, जो यूक्रेन में अण्वेषक दल की अगुआ हैं, कहती हैं "पौष्टिक आहार, उत्तम मातृत्व देखभाल, तनाव में कमी, तथा शिशु की उत्तम देखभाल सभी मिलकर मद्यसेवन से प्रभावित गर्भकाल तथा शिशुजन्म को बेहतर बना सकते हैं"
वर्तमान अण्वेषण के प्रतिफल उत्साहजनक हैं, अण्वेषक दल अपने अण्वेषण को सतत जारी रखेंगे तथा अपेक्षाकृत अधिक संख्या में गर्भवती माताओं के मातृत्व काल पर अण्वेषण को लागू करेंगे। अण्वेषकों की सोच पूर्व मातृत्व काल के संवेगों के औचित्य को शिशु के भावी जीवन में उसके विकास में दूरगामी परिणामों पर भी पूरा ध्यान देने की है।
प्रो. मिरांडा कहते हैं "अगर हम शिशु विकास का प्रक्षेप-पथ उनके जीवन में पूर्वानुमानित कर सकें तो यह कहीं अधिक आसान होगा उसके जीवन में आने वाली विसंगति एवं समस्याओं का उपचार करने के"। समस्याओं और विसंगतियों के प्रति सर्वाधिक संवेदी माताओं और शिशुओं की पूर्व पहचान स्वास्थ्य सेवा के प्रदाताओं को उन्हें बेहतर सेवा तथा संबल देकर आश्वस्त कराने में मदद करेगी।

जानिए, सीखिए कि आरंभिक गर्भावस्था में, मद्य-अल्कोहोल व गाँजे-मारिजुआना का सेवन कैसे गर्भस्थ शिशु के मस्तिष्क पर प्रारंभिक विकास के दौरान ही स्थायी बदलाव का कारण हो सकता है।
टिम न्यूमॅन
                                                                                                  http://www.medicalnewstoday.com/articles/313999.php?utm_source=dlvr.it&utm_medium=gplus

आरंभिक गर्भकाल के दौरान मद्य-अल्कोहोल तथा गाँजा-मारिजुआना  का सेवन गर्भस्थ शिशु के प्राकृतिक व स्वाभाविक  विकास में व्यवधान उत्पन्न करता है।  


पूर्व प्रायोगिक परीक्षणों से जो प्रायोगिक जन्तुओं पर किए गए, सामने आया कि केनाबिनॉइड्स (सीबीस) यौगिक जो गाँजे में विद्यमान होते हैं तथा सीबीडी व टेट्राहाइड्रोकॅनाबिनॉल टीएचसी युक्त होते हैं, से प्रारंभिक गर्भकाल में संपर्क विकास हेतु उद्यत भ्रूण की कुरूपता, भ्रष्ट रचना के जिम्मेदार हैं।अण्वेषण यह भी उद्घाटित करता है कि  सीबीस तथा मद्य से सम्मिलित संपर्क मस्तिष्क व मुख/चेहरे के महत्वपूर्ण विकास के दौरान इस नैसर्गिक प्रक्रिया में व्यवधान तथा त्रुटी/क्षती उत्पन्न करता है।
यह अध्ययन राष्ट्रीय मद्य दुष्प्रयोग, राष्ट्रीय स्वास्थ्य संगठन -एनआइएच द्वारा पोषित होकर  विज्ञानिकी प्रतिवेदन में प्रकाशित किया गया।
प्रसव पूर्व मद्य सेवन एक मुख्य तथा बचाव योग्य शिशु जन्म विकृति, व यूएस में तंत्रिका तंत्र के विकास में असामान्यता का मुख्य कारण है।एनआईएए के निदेशक जॉर्काज एफ कूब कहना है।क्योंकि गाँजा तथा मद्य बहुधा एकसाथ या लगभग प्रतिपूरक की तरह हैं, दोनों का मिश्रित प्रभाव या कहें कि कुप्रभाव, कॅनाबिनाइड्स व मद्य, चिंताजनक है , पृथक -पृथक सेवन भी।
मानव के विकासशील भ्रूण पर मद्य का दुष्प्रभाव सर्वज्ञात है, तथा समस्त जीवन में भौतिक अपभ्रंष, संज्ञानात्मक, ज्ञान संबंधी अपवंचनाओं के लिए प्रतिकूल प्रभाव का व्यूह है जो गर्भावस्था में मद्य व मादक पदार्थ सेवन के दुष्परिणाम-एफएएसडी कहलाता है।
मद्यसेवन गर्भावस्था के किसी भी पढा़व पर गर्भस्थ शिशु/भ्रूण को नष्ट-भ्रष्ट करता है, प्राथमिक अवस्था में भी जब माता को गर्भवती होने का पता तक न हो।मादक पदार्थ जैसे चरस-गाँजा से संपर्क अथवा इनके साथ मद्य का मिश्रित प्रयोग के दुष्प्रभावों का सम्मिलित दुष्प्रभाव का पूर्ण आकलन, निर्धारण तो अभी शेष है।
अध्ययन में वैज्ञानिकों का नेतृत्व स्कॉट परनेल द्वारा किया गया, मद्य--सुरा के अध्ययन हेतु उत्तरी केरोलिना के बॊल्स केंन्द्र,  में प्रयोगिक कृन्तकों पर किया गया।
अण्वेशकों ने पाया कि मादक पदार्थों-सीबीडी तथा टीएचसी से एकमेव संपर्क से नेत्रों, मस्तिष्क तथा मुखाकृती  की अपसंरचना उतनी ही मात्रा में संभावित है जितनी की पूर्व गर्भकाल में सिर्फ मद्य-अल्कोहोल के सेवन से होती है। अण्वेषण में यह भी पाया गया किसबीएस तथा मद्य दोनों सम्मिलित हों तो इन अपसंरचनात्मक विकास की मात्रा द्विगुणित हो जाती है। उन्होंने इसे एक मत्स्य पर प्रयोग द्वारा निश्चित व सिद्ध किया।
परनेल्स अण्वेशक दल ने मादक पदार्थ तथा मद्य का सूक्ष्मतम अणुस्तरीय कार्यप्रणाली की भी व्याख्या की।  उन्होने बताया कि विकास क्रम मे भ्रूण के अणुओं में संदेशों के आदान-प्रदान की प्रणाली जैसे हेजहॉग मार्ग में व्यवधान उत्पन्न करते हैं। गर्भस्थ भ्रूण के अणुओं के मध्य संदेशों में व्यवधान उत्पन्न करते हैं।विभिन्न शारीरिक अवययों के विकास में भिन्न कोशिकीय अणुओं का अविकल संवाद सही मानव शरीर को विकसित करता है, लेशमात्व्यवधान भी विकृती का जन्मदाता है। 
विकासशील गर्भस्थ भ्रूण का  संपर्क आंशिक तौर पर भी, मद्य तथा मादक पदार्थों से संपर्क, भले ही यह नीम्नतम मात्रा में हो,  विभिन्न गर्भावस्था में विकृतियों का निश्चित कारण है।


This news release describes a basic research finding. Basic research increases our understanding of human behavior and biology, which is foundational to advancing new and better ways to prevent, diagnose, and treat disease. Science is an unpredictable and incremental process — each research advance builds on past discoveries, often in unexpected ways. Most clinical advances would not be possible without the knowledge of fundamental basic research.
About the National Institute on Alcohol Abuse and Alcoholism (NIAAA): The National Institute on Alcohol Abuse and Alcoholism (NIAAA), part of the National Institutes of Health, is the primary U.S. agency for conducting and supporting research on the causes, consequences, diagnosis, prevention, and treatment of alcohol use disorder. NIAAA also disseminates research findings to general, professional, and academic audiences. Additional alcohol research information and publications are available at www.niaaa.nih.gov.
About the National Institutes of Health (NIH): NIH, the nation's medical research agency, includes 27 Institutes and Centers and is a component of the U.S. Department of Health and Human Services. NIH is the primary federal agency conducting and supporting basic, clinical, and translational medical research, and is investigating the causes, treatments, and cures for both common and rare diseases. For more information about NIH and its programs,

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें