हिमैनजियोमा- रक्तवाहिकार्बुद
हिमैनजियोमा सामान्यतः रक्त वाहिकाओं की रसौली, गठान या अर्बुद-ट्यूमर होता है तथा कई प्रकार का होता
है। इनका रंग और आकार अलग-अलग हो सकता है। यह अधिकतर बिना कैंसर वाली गठानें होती हैं,
जो चेहरे, गर्दन या त्वचा पर कहीं भी दिखाई
देते हैं। इनके लिए किसी चिकित्सीय उपचार की जरूरत नहीं होती है। शिशु तथा महिलाओं में यह अधिक देखने में आता है। हिमैनजियोमा तीन महीने की
उम्र तक अपने पूर्ण आकार तक पहुँच जाता है तथा प्रसार समाप्त होकर बारह महीने की
उम्र तक संपूर्ण हो जाता है। हिमैनजियोमा व्यर्थ वसातंतुओं का
जमाव, खरोंच, या अवांछित त्वचा है।
परिभाषा
सभी रक्त वाहिनी संबंधी गठान, रसौली
तथा अर्बुद, जन्म से अथवा जन्म के पश्चात हिमैनजियोमा-रक्तवाहिकार्बुद
से परिभाषित होते थे। म्यूलेकिन तथा ग्लोवॅकी द्वारा
कोशिकाओं की वैशिष्टता, प्रकृत इतिहास तथा घाव के नैदानिक व्यवहार के अनुसार
वर्गीकरण का तरीका प्रस्तुत किया गया। ग्लूट-1, इस विशिष्ट अंकगणक द्वारा शैशवकालीन हिमैनजियोमा अंतर करने की प्रक्रिया में क्राँति ला
दी।
संकेत और लक्षण
इसमें आरंभिक वृण-खरोंच, एक धवल दाग अथवा रगड़ के निशान जैसे दिखते हैं।
यकृत-लीवर-हेपेटिक हिमैनजियोमा-रक्तवाहिकार्बुद को अल्ट्रासाउण्ड जाँच की आवश्यकता होती है।
हिमैनजियोमा के प्रकार व कारण-
कैपिलरी
या सुपरफिशियल हिमैनजियोमा,
कैवरनस
या डीप हिमैनजियोमा
कम्पाउंड
या मिक्स हिमैनजियोमा
हिमैनजियोमा शरीर
में जहां है, उसके आधार पर इसे कैपिलरी या
सुपरफिशियल हिमैनजियोमा, कैवरनस या डीप हिमैनजियोमा और कम्पाउंड या मिक्स हिमैनजियोमा में
बांटा जा सकता है। रक्तवाहिकार्बुद क्यों होता है इसका कारण अभी भी अज्ञात है। माना
जाता है कि यह परिवारों में पीढ़ी दर पीढ़ी चलता है। इस बात के प्रमाण नहीं हैं कि
हिमैनजियोमा का कुछ निश्चित खाद्य पदार्थों विकिरणों से अनावृति-एक्सपोज़र, रसायन आदि
से कोई संबंध है। लेकिन यह तब होता है जब छोटी-छोटी रक्त नलिकाएं
आक्रामक ढंग से वंशवृद्धि करने लगती हैं और एक पिण्ड बना लेती हैं। किसी व्यक्ति को
एक या कईं हिमैनजियोमा हो सकते हैं। एक व्यक्ति में कई हिमैनजियोमा होने
के कारण खतरा बढ़ जाता है और इस स्थिति को छितरा हुआ, रूपांतरित रक्तवाहिकार्बुद
-डिस्सेमिनेटेड
हिमैनजियोमैटासिस कहते हैं। अगर किसी नवजात शिशु को पांच
से अधिक त्वचा-वृण क्युटेनियस ट्युमर्स हैं तो
बच्चे को आँत संबंधी रक्तवाहिकार्बुद
विसरल हिमैनजियोमा
होने का खतरा बढ़ जाता है। जो वृक्क-लिवर,
मस्तिष्क, पाचन मार्ग या फेफड़ों आदि में हो सकता
है, और इसलिए ऐसे बच्चों की अच्छी तरह जांच करानी चाहिए ताकि
उनका सही निदान हो पाए।
संकेत और लक्षण
शैशवकालीन हिमैनजियोमा-रक्तवाहिकार्बुद,
त्वचा पर होने वाला हिमैनजियोमा बचपन
में होने वाली समस्या है। शैशवकालीन हिमैनजियोमा-रक्तवाहिकार्बुद,
आमतौर पर शिशु के प्रथम कुछ सप्ताहों या महीनों में ही विकसित होना प्रारंभ
हो जाता है। यह समय पूर्व जन्में शिशुओं में, जो 3 पौंड से कम वजन के होते हैं, महिलाओं में, तथा जुड़वां बच्चों में अधिक सामान्य हैं। इसमें आरंभिक वृण-खरोंच, एक धवल दाग अथवा रगड़ के निशान जैसे दिखते हैं।
अधिकतर हिमैनजियोमा-रक्तवाहिकार्बुद ग्रीवा तथा
मस्तक पर उभरते हैं किन्तु कभी कभी यह लगभग कहीं भी उभर सकते हैं। हिमैनजियोमा-रक्तवाहिकार्बुद का रंग तथा आकार उनके उभरने के स्थान तथा उनकी त्वचा पर गहराई
पर निर्भर करता है।
शैशवकालीन हिमैनजियोमा-रक्तवाहिकार्बुद
ऐतिहासिक रूप से उनके स्ट्राबैरी स्वरूप के कारण स्ट्राबैरी हिमैनजियोमा
के नाम से जाने जाते थे। कुछ स्थानों पर सतह पर उभरने वाले हिमैनजियोमा-रक्तवाहिकार्बुद
जैसे मस्तक के पिछले हिस्से में, गरदन की सलवटों में तथा
पैरों के बीच, में संभावित अल्सर या घाव की आशंका होती है।
औसतन लगभग 7.10 प्रतिशत
इनफैन्टाइल-शैशवकालीन हिमैनजियोमा-रक्तवाहिकार्बुद, जन्म
के समय होते हैं, जबकि 90.93
प्रतिशत बाद में दिखाई देते हैं।
सतही हिमैनजियोमा-रक्तवाहिकार्बुद
यह त्वचा
पर काफी ऊपर की ओर होकर चटख लाल या लाल बैंगनी रंग लिए होते हैं। त्वचा के ऊपर उभरने
वाले वृण सपाट होते हैं लांछन या केशिका गुच्छों से युक्त होते हैं। त्वचा से यह हलके
उभरे दाने अथवा धातुई उभार जैसी रचना होती है।
अल्सर या व्रण से
ग्रस्त हिमैनजियोमा-रक्तवाहिकार्बुद
इस तरह के रक्तवाहिकार्बुद दानेदार या धातु
के सदृश दिखाई पड़ते हैं जो पीड़ा दायक भी होते हैं। साथ ही यह जीवाणुग्रस्त होकर पीत
परत,
रिसाव अथवा दुर्गंधित भी हो जाते हैं। व्रणग्रस्त हिमैनजियोमा-रक्तवाहिकार्बुद
में रक्त-रिसाव की भी आशंका होती है, विशेषकर गहरी क्षति और रगड़
वाले अंग पर।
गहन रक्तवाहिकार्बुद
यह हिमैनजियोमा प्रायः
अस्पष्ट नीलवर्ण मॅक्यूल्स-उपरंजक की तरह,
पॅप्यूल्स-फुँसी में
बदलने वाली गाँठ, नॉड्यूल्स तथा बड़े ट्यूमर-गठान रूपी होते हैं।
प्रवालजीवी घाव बहुधा दबाने योग्य होकर भी अडिग होते हैं। कई गहन रक्तवाहिकर्बुद के
आस पास या मुख्य भाग में यह लघुत्तर सतही धमनियों से युक्त होकर स्पष्ट दिखाई देते है, अंतर्स्थित
मौलिक अवययों अथवा प्रतिवेषीय धमनीय विशिष्टताओं के। सतही के बजाय गहरे रक्तवाहिकार्वुद
की चेष्ठा कुछ विलंब से परिपक्व होने की होती है, तथा
यह दीर्घ एवं विलंबित प्रजननशील अवस्था लिए होते हैं। गहन रक्तवाहिकार्बुद यदाकदा ही
वृणयुक्त होते हैं, किन्तु उनके स्थानिक प्रभाव, आकार
तथा वृद्धि के चलते कुपरिणाम दे सकते हैं। गहन रक्तवाहिकार्बुद की लगभग संवेदनशील संरचना
तथा प्रजननशील अवस्था के कारण प्रतिवेशी मुलायम शारीरिक रचना में संकुचन का कारण बन
सकते हैं जैसे कि बाह्य कर्ण नलिका तथा नेत्र पलकों पर।
मिश्रित रक्तवाहिकार्बुद
सतही तथा गहन रक्तवाहिकार्बुद
के मिश्रित रूप होते हैं तथा कई माह तक सुस्पष्ट नहीं होते। कई रोगियों में गहन, सतही, मिश्रित
अथवा शैशविक रक्तवाहिकार्बुद के किसी भी सम्मिश्रण के रक्तवाहिकर्बुद हो सकते हैं।
हालांकि,
इनमें से कुछ जो बच्चों की देखने की क्षमता को प्रभावित करते हैं या
इनके कारण उन्हें साँस लेने में तकलीफ होती है या जो आंतरिक अंगों में विकसित होते
हैं जैसे लीवर, माँसपेशियां आदि तब उपचार की आवश्यकता पड़ती है।
आंतरिक हिमैनजियोमा
यह आमतौर पर वयस्कों को प्रभावित करता है।
हिमैनजियोमा और आंतरिक अंग-
मसल्स
हिमैनजियोमा - माँसपेशियों
में होने वाला हिमैनजियोमा में ट्युमर्स के कोई लक्षण दिखाई नहीं देते
हैं। कुछ में ट्युमर के आसपास थोड़ी सूजन दिखाई देती है। इसके साथ ही बहुत बेचैनी होती
है और उपचार की आवश्यकता होती है।
बोन हिमैनजियोमा- सामान्यतया बोन हिमैनजियोमा खोपड़ी या स्पाइन में होता है और अधिकतर 50-70 वर्ष की आयुवर्ग में दिखाई देता है। कैलिपलरी और कैवेरनस प्रकार सबसे सामान्य हिमैनजियोमा है, जो हड्डियों में पाया जाता है। ये या तो हड्डी की केंद्रीय कैनाल की सतह पर या गहराई में विकसित होता है। इसमें दर्द या सूजन जैसे कोई लक्षण दिखाई नहीं देते हैं।
बोन हिमैनजियोमा- सामान्यतया बोन हिमैनजियोमा खोपड़ी या स्पाइन में होता है और अधिकतर 50-70 वर्ष की आयुवर्ग में दिखाई देता है। कैलिपलरी और कैवेरनस प्रकार सबसे सामान्य हिमैनजियोमा है, जो हड्डियों में पाया जाता है। ये या तो हड्डी की केंद्रीय कैनाल की सतह पर या गहराई में विकसित होता है। इसमें दर्द या सूजन जैसे कोई लक्षण दिखाई नहीं देते हैं।
कईं लोगों को शैशव
या बचपन में ही हिमैनजियोमा हो जाता है, लेकिन ऐसा हमेशा नहीं
होता है। विशेषरूप से तब जब हिमैनजियोमा आंतरिक अंगों में होता है। बल्कि सामान्य तौर
पर लिवर और मांसपेशियों का हिमैनजियोमा तब होता है जब कोई दस या बीस साल की उम्र पार
कर चुका होता है और इनका रंग और आकार अलग-अलग
हो सकता है।
ये अधिकतर एंडोथेलियल कोशिकाओं की बिना कैंसर वाली गठानें होती हैं, जो चेहरे, गर्दन या त्वचा पर कहीं भी दिखाई देते हैं। इनके लिए किसी चिकित्सीय उपचार की जरूरत नहीं होती है।
ये अधिकतर एंडोथेलियल कोशिकाओं की बिना कैंसर वाली गठानें होती हैं, जो चेहरे, गर्दन या त्वचा पर कहीं भी दिखाई देते हैं। इनके लिए किसी चिकित्सीय उपचार की जरूरत नहीं होती है।
लिवर हिमैनजियोमा- यह
सबसे सामान्य हिमैनजियोमा है,
जो आंतरिक अंगों में विकसित होता है। आमतौर पर लिवर हिमैनजियोमा
छोटा होता है व दाएं लोब में विकसित होता है। लेकिन अगर इसमें दर्द या पेट फूला हुआ
लगना जैसे लक्षण दिखते हैं तो तुरंत उपचार की आवश्यकता हो़ती है। बड़ा लिवर हमैनजियोमा
घातक साबित हो सकता है क्योंकि यह हृदय, रक्त नलिकाओं को प्रभावित
करता है।
उपचार- हेमैनजियोमा का उपचार उसके प्रकार पर निर्भर है, लेकिन जो आंतरिक अंगों या हड्डियों या मांसपेशियों में विकसित होते हैं उनका उपचार एम्बोलाइजेशन (नॉन सर्जिकल) या सर्जरी द्वारा किया जाता है। एम्बोलाइजेशन हड्डियों और लिवर के हिमैनजियोमा को ठीक करने के लिए किया जाता है।
उपचार- हेमैनजियोमा का उपचार उसके प्रकार पर निर्भर है, लेकिन जो आंतरिक अंगों या हड्डियों या मांसपेशियों में विकसित होते हैं उनका उपचार एम्बोलाइजेशन (नॉन सर्जिकल) या सर्जरी द्वारा किया जाता है। एम्बोलाइजेशन हड्डियों और लिवर के हिमैनजियोमा को ठीक करने के लिए किया जाता है।
शैशविक
रक्तवाहिकार्बुद का विभेदीकरण केन्द्रक व स्थानिकता के अँगविभेद व अनिश्चतता अनुसार
किया जाता है। केन्द्रित शैशविक रक्तवाहिकार्बुद विशेष अलग थलग स्थान पर स्थानिक
प्रकाट्य लेते हैं। अँगविभेदक रक्तवाहिकार्बुद वृहदाकार होकर अंग विशेष पर पूरी तरह
फैल जाता है। यह वृहद रक्तवाहिकार्बुद जो अँग विशेष पर फैल जाते हैं अपनी सतह के
नीचे विसंगति लिए होते हैं जो त्वरित जाँच का कारण है विशेषकर जब यह रक्तार्बुद
मुख, त्रिकास्थि-सॅक्रम तथा श्रोणि-पेल्विस पर हो तो।
जब
तक रक्तवृण ना हो, रक्तवाहिकार्बुद में रक्त स्राव देखने में नहीं आता और ना ही यह
पीड़ादायक होते हैं। असुविधा तभी होती है जब यह रक्तवाहिकार्बुद अपने आप में वजनी
हो जाते हैं तथा किसी महत्वपूर्ण छिद्र के लिए अवरोधक हो जाते हैं।
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