29/06/18

कटे-फटे होंठ व तालू

G-BVJED2G3F0

कटे-फटे होंठ व तालु शिशुओं में जन्मजात बीमारी होती है जो माँ के गर्भ के दौरान भ्रूण के चेहरे के विकृत विकास के कारण होती है।

Cleftlipandpalate.JPG

इंदौर में PAK के बच्चे को मिली नई मुस्कान, अस्पताल ने नहीं ली फीस 

भारत-पाकिस्तान के बीच राजनीतिक रिश्ते हमेशा से तनावपूर्ण रहे हैं, लेकिन आम लोगों के बीच रिश्तों में ज्यादा तल्खी नहीं दिखती. पाक से आए लोगों का देश में मान-सम्मान मिलता है, खासकर इलाज के लिए यहां आने वालों को. पाक से आए ऐसे ही एक नवजात को नई जिंदगी दी है भारतीय डॉक्टरों ने.
पाकिस्तान का मूसा मलिक अब आम बच्चों की तरह खुलकर मुस्कुरा सकता है और लोग हैरतभरी निगाहों से भी नहीं देखेंगे क्योंकि पड़ोसी देश से आए इस एक साल के बच्चे के कटे-फटे होंठ और तालू का इंदौर के डॉक्टरों के एक दल ने सफल ऑपरेशन किया है.
2 ऑपरेशन के बाद मिली कामयाबी
शहर के एक अस्पताल में इस जटिल ऑपरेशन को अंजाम देने वाली टीम के अगुवा सर्जन जयदीप सिंह चौहान ने बताया कि रावलपिंडी में रहने वाले मूसा के कटे-फटे होंठ और तालू की शल्य चिकित्सा दो चरणों में की गई. एक वर्षीय बालक का पहला ऑपरेशन अप्रैल में किया गया, जबकि उसकी दूसरा ऑपरेशन तीन दिन पहले की गई.
उन्होंने बताया कि मूसा कटे-फटे होंठ और तालू के साथ पैदा हुआ था. एक अनुमान के मुताबिक भारतीय उपमहाद्वीप में ऐसी जन्मजात विकृति हर 800 में से एक बच्चे में पाई जाती है.
अस्पताल ने नहीं ली फीस
चौहान ने बताया कि मूसा के ऑपरेशन के बदले उसके परिवार से कोई फीस नहीं ली गई. इस काम में गैर सरकारी संगठन 'स्माइल ट्रेन इंडिया' ने भी अस्पताल की मदद की.
मूसा के पिता कामरान मलिक (35) पाके पंजाब प्रांत के रावलपिंडी में स्टील वेल्डिंग का काम करते हैं. कामरान ने कहा, 'मैं भारत में अपने बेटे की सर्जरी से संतुष्ट हूं और इंदौर में उसका इलाज करने वाले डॉक्टरों का व्यवहार बेहद शानदार था.'
बच्चे की मां सायमा ने अपने बेटे की सर्जरी के लिए दो बार मेडिकल वीजा प्रदान करने के लिए भारत सरकार का शुक्रिया अदा किया. उन्होंने कहा, 'मेरे बेटे के कटे-फटे होंठ और तालू के कारण पहले लोग उसे अजीब निगाहों से देखते थे, लेकिन उसके सफल ऑपरेशन के बाद अब उसको लेकर लोगों का रवैया बदल जाएगा.'
सायमा ने कहा, 'अगली बार हम पर्यटन वीजा पर भारत आना चाहते हैं, ताकि आगरा में ताजमहल के दीदार की हमारी ख्वाहिश पूरी हो सके.'

आज तक
एमएसएन.काॅम


जिन मासूम चेहरों पर दर्द, मायूसी और चिंता की लकीरें होती थीं, आज वे खुशियों से दमक रहे हैं।

आशीष दुबे | Last Modified - Jun 01, 2015, 05:14 AM IST
बिलासपुर।कल तक जिन मासूम चेहरों पर दर्द, मायूसी और चिंता की लकीरें होती थीं, आज वे खुशियों से दमक रहे हैं। संभव हुआ शहर के पुराना बस स्टैंड रोड स्थित लाडीकर अस्पताल के प्रयासों से। ये हाॅस्पिटल उन माता-पिता के लिए वरदान साबित हो रहा है, जिनके बच्चों के होंठ व तालु में जन्म से विकृति हैं। दरअसल, यहां उनकी सर्जरी बिल्कुल मुफ्त की जाती है। इस दरमियान परिजनों को ठहरने और खाने-पीने की सुविधा भी नि:शुल्क की जाती है। बीते चार साल में साढ़े तीन हजार बच्चे यहां ऑपरेशन करवा चुके हैं।

अमेरिका की संस्था ‘द स्माइल ट्रेन’ के सहयोग से यह सुविधा बिलासपुर के लाडीकर अस्पताल के अलावा रायपुर के मेडिसाइन व कालरा हाॅस्पिटल में भी मौजूद है। मेडिकल साइंस के मुताबिक होंठ या तालु के कटने की विकृति दो तरह से जकड़ती है। पहली अनुवांशिक और दूसरी अधूरे गर्भकाल के कारण। ऐसे में शिशु दिनोंदिन कमजोर और बीमार होते जाते हैं। उनमें सामान्य बच्चों की तरह खेलने-कूदने की ताकत नहीं होती। वे होंठ या तालु के कटने के बाद मां के दूध को ताकत लगाकर नहीं खींच पाते, जिससे भूखे रहते हैं। सांस ज्यादा खींचने से हवा पेट में जाकर उसे फुला देती है। मां को लगता है कि बच्चे का पेट भर गया है, इसलिए वह उसे सुला देती है। यही कमजोरी का कारण बनता है।

होंठ में एक, तालु में दो दिन लगते हैं
अस्पताल में होंठ के ऑपरेशन के लिए एक तो तालु की सर्जरी के लिए दो दिन लगते हैं। इससे पहले डॉक्टर बच्चे की सभी तरह से जांच करते हैं, ताकि उन्हें कोई परेशानी न हो। पैरेंट्स को एक निश्चित दिन बुलवाया जाता है और रायपुर या दूसरे राज्यों के डॉक्टर यहां बच्चों का ऑपरेशन करने आते हैं।
ऑपरेशन से पहले जांच बेहद जरूरी है
डॉक्टरों के मुताबिक सर्जरी से पहले बच्चे का स्वस्थ होना बेहद जरूरी है। इसके लिए जांच के बाद मां को दूध पिलाने टिप्स दिए जाते हैं। बेबी को सुलाने के बजाय गोद में बिठाकर दूध पिलाने की सलाह दी जाती है। एक किताब दी जाती है, जिसमें विस्तृत जानकारी होती है।
कोई कभी भी आ सकता है
यहां पिछले चार साल से बच्चों के होंठ और तालु का नि:शुल्क इलाज हो रहा है। साढ़े तीन हजार बच्चों की सफल सर्जरी हो चुकी है। इस दरमियान परिजनों के रहने और खाने-पीने की सुविधा दी जाती है। अस्पताल में कोई कभी भी आकर बच्चे की जांच करवा सकता है। किसी तरह की फीस नहीं लगती है। -नवनीता घोष, एडमिनिस्ट्रेटर, लाडीकर अस्पताल
केस-1
बेबी का तालु सर्जरी के 15 दिनों बाद ठीक हो गया
कुछ साल पहले बिलासपुर के राजकुमार खैरवार के घर बेटी हुई। नाम रखा अनिशा लेकिन परिवार यह देखकर चिंतित हो गया कि उसका तालु नहीं है। कहीं से उन्हें पता चला कि लाडीकर अस्पताल में इसकी मुफ्त सर्जरी होती है। उन्होंने जांच करवाई, जिसमें पता चला कि बेटी ठीक हो सकती है। दो दिन की सर्जरी और पंद्रह दिनों बाद सबकुछ ठीक। पिता बताते हैं कि डॉक्टरों ने बच्ची को गलने वाला टांका लगाया, जिससे उसको परेशानी भी नहीं हुई।
केस-2
बेटे के होंठ कटे-फटे, डॉक्टर ने विकृति दूर की
अमेरी के अनिल दिनकर साव के बेटे हितेश के होंठ बचपन से कटे-फटे थे। इसके कारण चेहरा विकृत दिखाई देता था। पड़ोसी के बताने पर वे बिलासपुर में लाडीकर हॉस्पिटल पहुंचे। डॉक्टरों ने जांच की और बच्चे के ऑपरेशन की तारीख बताई। उस दरमियान कैंप चल रहा था, जिसमें अनिल ने बच्चे की सर्जरी करवाई। पड़ोसी कहते हैं... देखकर लगता ही नहीं कि हितेश के होंठ
कभी फटे हुए थे। उसे अब बोलने में भी कोई परेशानी नहीं होती।
https://www.bhaskar.com/chhatisgarh/bilaspur/news/CHH-BIL-OMC-mutilated-lip-and-palate-surgery-to-free-5009702-NOR.html







शिशुओं में कुछ बीमारियां जन्मजात होती है, जो जन्म के बाद बच्चों के अक्सर बीमार रहने का कारण बनती है। जन्मजात असमानताएं शारीरिक व मानसिक दोनों हो सकती हैं। इसमें अधिकतम असमानताएं तंत्रिका नाल की विकृति से संबंधित होती है, जिसे न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट कहा जाता है। इसमें भी ज्यादातर स्पाइना बाइफिडा की विकृति पाई जाती है। इन विकृतियों से बचने का सबसे सरल उपाय है जानकारी और सावधानी।

स्पाइना बाइफिडा
तंत्रिका नाल से जुड़ी सबसे अधिक पाई जाने वाली विकृति है। भारत में करीब 1,500 बच्चे इस विकृति के साथ जन्म लेते है। स्पाइना बाइफिडा में रीढ़ दरारयुक्त हो जाती है और कभी-कभी स्पाइनल कॉर्ड भी बाहर निकली हुई रहती है। इसके कारण दरार वाली जगह के नीचे वाली मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं। या उसके नीचे के हिस्से में लकवा मार जाता है।

विकीपीडिया

अमस्तिष्कता
यह तंत्रिका नाल की सबसे गंभीर विकृति है करीब 1000 बच्चे हर साल हमारे देश में इस विकृति के साथ जन्म लेते हैं, इस विकृति में सिर की हड्डी का ऊपरी भाग एवं प्रमस्तिष्क अनुपस्थित रहता है। अधिवृक्क-एड्रिनल ग्रंथियां क्षतिग्रस्त रहती हैं, ऐसे में शिशु सिर्फ कुछ ही क्षणों के लिए जीवित रहते हैं और उनमें भी अधिकांश संख्या लड़कियों की होती हैं।

हाइड्रानेसिफेली (मस्तिष्क में जलजमाव)
इस विकृति में शिशु का सिर असामान्य रूप से बड़ा होता है। मस्तिष्क के रिक्त स्थानों-वेंट्रिकल्स में मस्तिष्क द्रव्य-सेरिब्रोस्पाइनल द्रव की मात्रा अधिक होने से सिर की हड्डियां पतली हो जाती हैं, जो दिमागी विकलांगता का कारण बनता है। इनके अलावा भी कई विकृतियां हैं, जो जन्म से पाई जाती हैं जैसे विकृत होंठ व तालु। हर वर्ष सात से 8000 बच्चे इस विकृति के साथ जन्म लेते है। गर्भावस्था के आरंभिक दौर में कुछ विषाणु-वायरस के संक्रमण से बच्चे में जन्मजात विकृति पैदा हो जाती है इन जन्मजात विकृतियों में बहरापन, मोतियाबिंद, हृदय संबंधी रोग व मानसिक रूप से अक्षमता शामिल है ।
Hydranencephaly.jpg

ये होते हैं कारण
विकारग्रस्त बच्चे या जो बच्चे जन्मजात असमानताओं के साथ पैदा होते हैं उनके रोग का कारण पूर्णतया नहीं समझा जा सका हैं, लेकिन मुख्य रूप से इन्हें दो कारणों में विभाजित किया गया है
  • अनुवांशिक या वंशानुगत कारण
  • वातावरण संबधी कारण
कैसे करें बचाव

  • गर्भधारण से पहले ही पौष्टिक खाना खाने की आदत डालें। फल, सूखे मेवे, हरी पत्तेदार सब्जियां, दुग्ध उत्पाद-डेयरी उत्पाद भोजन में शामिल करें। जंक फूड लेने से बचें।
  • गर्भावस्था से पहले व गर्भावस्था के शुरुआती चरण में फॉलिक एसिड का सेवन करने से विकारग्रस्त शिशु होने की आशंका कम रहती है।

  • गर्भधारण से पहले छोटी चेचक व रूबेला का टीका अवश्य लगवा लें। 12 से 15 माह की उम्र के दौरान एमएमआर का टीका लगाया जाता है गर्भवती महिला को रूबेला का वैक्सीन नहीं दिया जाता ।
  • गर्भावस्था के दौरान किसी भी दवा का सेवन बिना डॉक्टरी सलाह के न लें। कोई भी दवाई लेने में अत्यधिक सावधानी रखें।
  • यदि महिला मधुमेह, उच्च रक्तचाप, अस्थमा, आदि से पीड़ित हो तो गर्भधारण से पहले रक्त शर्करा-ब्लड शुगर को नियंत्रित रख कर शिशु की जन्मजात विकृति को रोका सकता है, लेकिन इससे पहले आप अपने डॉक्टर से अवश्य सलाह लें।
  • गर्भावस्था के आरंभिक हफ्ते में एक्सरे से बचें। इससे भ्रूण पर खतरनाक प्रभाव पड़ता है, शुरुआती चार महीनो में एक्सरे करवाने से बचें।
  • हायपर या हाइपो थायरॉयड के मरीजों को भी गर्भधारण करने से पहले डॉक्टरी परामर्श लेना जरूरी है।Atul Modi, MSN.com

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें