यह रोग ऐंठन, झटका, चमकी व दौरे के नाम से जाना जाता है। स्ननायु व मस्तिष्क रोगों में से एक, इस रोग की यही विशेषता है। यह पूरे शरीर में अथवा शरीर के आधे भाग में असामान्य मरोड़, आँखों व चेहरे की विकृत विचलन, अजीब अनुभूतियाँ, चेतना की क्षणिक हानि, विचित्र व्यवहार जैसी समस्याओं और लक्षणों से युक्त होता है। इस रोग में छोटे अंतराल से लेकर, क्षणिक एवं गौण अकड़न अथवा कंपन होता है जिसका प्रत्यक्षतः कोई कारण समझ नहीं आता है।
मनस्थिति एवं समाज, मानसिक एवं सामाजिक
सामाजिक एवं मानसिक दृष्टि से मिरगी या अपस्मार के विपरीत प्रभाव देखे जाते हैं। इनमें सामाजिक विस्थापन, लांछन तथा असहायता या कुंठा शामिल है। इनके फलस्वरूप रोगी अपेक्षाकृत निम्न शिक्षित और निम्न स्तर के रोजगार ही प्राप्त कर पाता है। साधारणतः इन रोगियों में सीखने की कठिनाई पायी जाती है, विशेष रूप से मिर्गी रोग से ग्रस्त बच्चों में। उनके इस रोग से ग्रसित होने का लाँछन उनके परिवार को भी भोगना पड़ता है।
कारण
प्रत्येक हजार मनुष्यों में 4-5 लोगों में यह रोग पाया जाता है। बच्चों में भी इस रोग को देखा गया है। इस रोग का मूल कारण अभी भी अनिर्धारित है। कई रूप से यह माना जाता है कि यह आनुवांशिकता के फलस्वरूप होता है, साथ ही जन्म के समय या बचपन में सिर पर चोट लगने से भी होता है। मस्तिष्क में संक्रमण, मस्तिष्क की असामान्य रचना, आघात या मस्तिष्क में ट्यूमर या ऱसौली के कारण भी यह रोग होता है। शरीर के विभिन्न रसायनिक रसों के कुछ दोष भी मिर्गी के जन्मदाता होते हैं।
परीक्षण
इस रोग के इलाज के लिए शीघ्रता से कदम उठायें और बाल रोग चिकित्सक अथवा न्यूरोलॉजिस्ट से संपर्क करें। कुछ मामलों में परीक्षणों से भी कोई सुराग नहीं मिल पाता, इसलिए हर रोगी की आवश्यकतानुसार परीक्षण का निर्णय लिया जाता है। सामान्यतः इलेक्ट्रो एनसेफ्लोग्राफी (ईईजी) तथा मस्तिष्क की स्केनिंग या परीक्षण सी टी स्केनिंग की जाती है। मिर्गी से ग्रस्त बच्चों का एमआरआई किया जाता है।
उपचार
रोग के कारणों का पता लगने के बाद उन कारणों के निदान का उपचार शुरू किया जाता है। सीएनएस संक्रमण, इनफेस्टेशन और कुछ मेटाबोलिक कारणों से हुए रोग का इलाज उपलब्ध है। शेष मामलों में इस रोग के दौरों को नियंत्रित करने के लिए दवाऐं दी जाती हैं।दिमागी रूप से कमजोर नहीं होते मिर्गी के रोगी, दवाओं से 80 फीसदी तक इलाज है संभव
Dainik Bhaskarहेल्थ डेस्क. मिर्गी ऐसी बीमारी है जिसमें रोगी को अचानक दौरा पड़ता है। इस दौरान वह अपना दिमागी संतुलन खो बैठता है और हाथ-पैर अकड़ने लगते हैं। शरीर कांपने लगता है और ऐंठ जाता है। इलाज करवाने पर काफी हद तक बीमारी में राहत मिल जाती है। मिर्गी मस्तिष्क से जुड़ी न्यूरोलॉजिकल बीमारी है। सिर पर चोट लगने, ज्यादा शराब का सेवन करने, ब्रेन ट्यूमर होने पर मस्तिष्क में ऑक्सीजन की कमी केी स्थिति में मिर्गी का दौरा पड़ सकता है। मिर्गी को लेकर अक्सर लोगों ने मन में कई सवाल होते हैं जैसे इसके रोगी दिमागी रूप से कमजोर होते हैं या इसका इलाज संभव नहीं है जबकि ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। हर साल 17 नवंबर को नेशनल एपिलेप्सी डे मनाया जाता है। इस मौके पर न्यूरोफिजिशियन डॉ. केसी कावरे बता रहे हैं इससे जुड़े भ्रम और सच...
भ्रम : यह एक जेनेटिक बीमारी है।
सच :
मिर्गी के हर मामले का कारण आनुवांशिक हो, ऐसा जरूरी नहीं है। फैमिली हिस्ट्री के अलावा गंदे पानी में उगी सब्जियाें के जरिए पेट के कीड़ों के अंडे या तेज बुखार का दिमाग तक पहुंचना भी इसका कारण हो सकता है। इसके अलावा जन्म के समय दिमाग में ऑक्सीजन की कमी, अधूरी नींद, दिमागी बुखार, सिर की चोट या इन्फेक्शन भी इस बीमारी की वजह हो सकते हैं।
भ्रम : मिर्गी के पेशेंट मानसिक रूप से कमजोर होते हैं।
सच : मिर्गी के रोगियों को दिमागी रूप से कमजोर माना जाता है जो एक भ्रम है। मिर्गी की स्थिति दिमाग में मौजूद न्यूरॉन्स के अधिक सक्रिय होने पर बनती है। इसका असर कुछ समय के लिए जरूर रहता है। लेकिन इससे पेशेंट स्थायी रूप मानसिक कमजोर नहीं होता। दौरे के समय मरीज छटपटाता है, मुंह से झाग निकलता और हाथ-पैर अकड़ जाते हैं लेकिन ऐसा कुछ समय के लिए रहता है।
भ्रम : मिर्गी पेशेंट महिला को प्रेग्नेंसी में दिक्क्त होती है।
सच : मिर्गी के उपचार के लिए ली जाने वाली दवाओं का असर प्रजनन क्षमता पर नहीं पड़ता है। गर्भावस्था के दौरान भी ऐसी कई दवाएं हैं जिन्हें लिया जा सकता है।
भ्रम : इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है।
सच : मिर्गी का इलाज काफी हद तक संभव है। तकरीबन 80 फीसदी मरीज एंटी-एपिलेप्टिक दवाओं से ही ठीक हो जाते हैं। गंभीर स्थिति में सर्जरी की जरूरत पड़ती है। ऐसे मरीजों को कुछ सावधानी बरतने की सलाह दी जाती है जैसे देर रात तक न जागें, तले-भुने और तेज मिर्च वाले भोजन से परहेज करें, शराब न लें, अधिक ऊंचाई वाली जगह पर जाने से बचें।
भ्रम: दौरा पड़ने पर मरीज को पकड़ कर रखना चाहिए।
सच : यह सही नहीं है। मरीज को जबरदस्ती न पकड़ कर रखें। दौरा पड़ने पर मरीज के गर्दन के पास के कपड़े ढीले करें ताकि उसे सांस लेने में तकलीफ न हो। मरीज को कुछ भी न खिलाएं। ऐसी स्थिति में ज्यादतर लोग मरीज के मुंह में चाबी या चम्मच रखते हैं जो गलत है। उसे एक करवट की ओर लेटा दें।
Dainik Bhaskar
डॉ दिनेश चौकसे
तंत्रिका विज्ञानी-न्यूरोलॉजिस्ट, माइग्रेन, मिर्गी, आघात, पर्किन्सन-इन्दौर
सत्य साँई, इन्दौर
राजस्थान के मिर्गी चिकित्सालय द्वारा विगत 40 वर्षों से पिडब्ल्यूई के रोगियों में नि:शुल्क औषधि वितरण किया जा रहा है।हालाँकि उन्होंने यह माना कि राजस्थान के गुलाबपुरा, जहाँ यह केन्द्र स्थित है, स्वस्थ्यकर्मी तथा रोगी मिर्गी या एपिलेप्सी के विषय में कम ही जानते हैं। इसके रोगी उपचार को आजीवन प्रक्रिया मानकर हताश जीवन जी रहे हैं व निरोगता का विचार ही त्याग चुके हैं।
म.प्र्. की समिती के जागरूकता तथा रोगी मार्गदर्शन कार्यक्रम से प्रभावित, वे रोगी तथा स्वास्थकर्मियों के लिए इसे लागू करने हेतु कृतसंकल्पित हैं।
तंत्रिका विज्ञानियों का इन्दौर स्थित समूह इससे उत्साहित है।
तंत्रिका शल्य चिकित्सक- न्यूरो सर्जन, मनोचिकित्सक-साइकोलाजिस्ट व परामर्शदाता जो मिर्गी-एपिलेप्सी कर्मी हैं योग गुरू डॉ जयमाला शाह द्वारा योग से इस रोग की चिकित्सा को समझा।
तंत्रिका शल्य चिकित्सक- न्यूरो सर्जन, मनोचिकित्सक-साइकोलाजिस्ट व परामर्शदाता जो मिर्गी-एपिलेप्सी कर्मी हैं योग गुरू डॉ जयमाला शाह द्वारा योग से इस रोग की चिकित्सा को समझा।
पोस्टर व चित्रण से भी इसे वर्णित किया गया।
94 रोगियों का परीक्षण व उपचार, एण्टी एपिलिेप्टिक औषधि भी निशुल्क वितरित की गई।
कम उम्र् में, विवाह अवसर तथा गर्भावस्था में महिलाओं के लिए विशेष शिविर मासिक शनिवार को आयोजित होते हैं।
17 नवम्बर राष्ट्रीय मिर्गी एपिलेप्सी दिवस है।
डॉ. नाडकर्णी (सचिव), डॉ वीजी डाकवाले का सुझाव तुरन्त उपचार आरम्भ करें,
नीम हकीम के पास समय व्यर्थ ना करें।
उन्होंने कहा, कि यह रोगी,मिर्गी रोग के फलस्वरूप, जीविका, दांपत्य व शिक्षा से सर्वाधिक उपेक्षित व वंचित है।
गर्भस्थ भ्रूण में मिर्गी-फिब्राइल सीजर, मिर्गी रोग में आहार विशेषकर कीटोजनिक आहार।
वाहन चालन-मिर्गी रोग।
इससे लाभान्वित 100 से अधिक रोगी तथा लगभग 200 स्वास्थ कर्मी या रोगी की देखभाल करने वाले।
कम उम्र् में, विवाह अवसर तथा गर्भावस्था में महिलाओं के लिए विशेष शिविर मासिक शनिवार को आयोजित होते हैं।
17 नवम्बर राष्ट्रीय मिर्गी एपिलेप्सी दिवस है।
डॉ. नाडकर्णी (सचिव), डॉ वीजी डाकवाले का सुझाव तुरन्त उपचार आरम्भ करें,
नीम हकीम के पास समय व्यर्थ ना करें।
उन्होंने कहा, कि यह रोगी,मिर्गी रोग के फलस्वरूप, जीविका, दांपत्य व शिक्षा से सर्वाधिक उपेक्षित व वंचित है।
गर्भस्थ भ्रूण में मिर्गी-फिब्राइल सीजर, मिर्गी रोग में आहार विशेषकर कीटोजनिक आहार।
वाहन चालन-मिर्गी रोग।
इससे लाभान्वित 100 से अधिक रोगी तथा लगभग 200 स्वास्थ कर्मी या रोगी की देखभाल करने वाले।
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