मेलबोर्न की आरएमआईटी
यूनिवर्सिटी, न्यूरोसर्जन तथा मेडिकल डिवाइस कम्पनी के एक संयुक्त
प्रयास में 3डी प्रिंटेड वर्टीब्रल केज (त्रिआयामी तकनीक से छापा गया मेरू
पिंजर) बनाने में सफलता मिली है। इसे गंभीर पीठ दर्द से ग्रस्त एक रोगी के लिए
बनाया गया है। अमान्डा गोर्विन नामक महिला के मेरूदंड के पाँचवें लम्बर
वर्टीब्रा तथा उत्तल में असामान्यता तथा गंभीर वय जनित क्षय से लगातार असहनीय
दर्द था। उन्हें स्पाइन सर्जरी विशेषज्ञ डॉ मार्क कॉघलेन से इलाज
कराने की अनुशंसा की गई जो उत्तरी गोसफोर्ड के प्रिंस ऑफ वेल्स हॉस्पिटल
में हैं।
मेरूदंड के पाँचवें लम्बर वर्टीब्रा तथा उत्तल में असामान्यता तथा
गंभीर वय जनित क्षय से लगातार असहनीय दर्द था।
|
डॉ मार्क कॉघलेन के
मतानुसार स्पाइनल सर्जरी एक वैकल्पिक राहत ही प्रदान करती, क्योंकि वर्तमान
सामान्यतः उपलब्ध प्रत्यारोपण गोर्विन के असामान्य प्रकार के वरटीब्रा
का सही विकल्प नहीं।
तदनंतर, एनाटॉमिक्स के मेडिकल
डिवाइस विशेषज्ञ के साथ प्रो. मिलन ब्रांट और उनकी टीम के आरएमआईटी यूनिवर्सिटी
केन्द्र के अत्याधुनिक निर्माण केन्द्र में आकल्पन किया गया। त्रिआयामी प्रिंटर
द्वारा तथा विशेषतः विकसित टिटेनियम स्पाइनल प्रत्यारोपण को तैयार किया गया।
ब्राँट ने बताया कि यह क्राँतिकारी तकनीक
प्रत्यारोपण विशेष का निर्माण परत दर परत करती है, हर परत पहले वाली परत पर कंम्प्यूटर
के नियंत्रण में चढ़ाई जाती है। ढलाई, सफाई तथा घिसाई की परंपरागत तकनीक के
बिल्कुल उलट।
किसी भी गूढ़, विशेषकर आंतरिक क्लिष्ट आकार
का नियंत्रित तथा कम लागत में सटीकता से निर्माण त्रिआयामी प्रिंटिंग का अतिरिक्त लाभ
है।
इस तकनीक में दक्ष एनाटॉमिक तथा आरएमआईटी
यूनिवर्सिटी केन्द्र के विशेष विभाग में इस व्यक्ति विशेष अनुरूपीय
प्रत्यारोपण निर्माण की रूपरेखा बनाई। इस कार्य हेतु गोर्विन के मेरूदंड के
सीटी स्केन की सहायता ली गई। दूसरी ओर लाईफ हेल्थकेयर नामक आपूर्तीकर्ता
द्वारा अन्य हिस्सों की आपूर्ती की गई।
इस सर्जरी के तीन माह पश्चात तक गोर्विन
की सामान्य गतिविधियाँ वेदनामुक्त और निर्बाध हैं।
त्रिआयामी प्रिंटिग, हवाई जहाजों तथा अँतरिक्ष
यानों के निर्माण में, यातायात साधनों के निर्माण तथा चिकित्सा क्षेत्र में एक क्राँतिकारी
तकनीक सिद्ध होगी।
परिस्थितीय रूप में व्यक्तिविशेष के अनुरूप
अति पेचीदा टिटेनियम प्रत्यारोपण का निर्माण, उदाहरणतः गोर्विन का मेरू
पिंजर बताता है कि घनात्मक तकनीक दीर्घावधि पीड़ा ग्रस्त रोगियों के लिए सतत्
प्रलंबन सिद्ध होगा।
स्रोतः आरएमआईटी विश्वविद्यालय
RMIT University in Melbourne has worked
with a medical device company and a neurosurgeon to successfully create a 3D
printed vertebral cage for a patient with severe back pain. When an abnormal
structure of the fifth lumbar vertebra and severe degeneration of the adjacent
disc was causing Amanda Gorvin constant lower back pain she was referred to
spine surgery specialist Dr Marc Coughlan, at the North Gosford and Prince of
Wales Hospitals.
Coughlan's opinion was that spinal
surgery was an option, but because of the unusual shape of Gorvin's vertebrae a
standard, off-the-shelf implant would possibly only give her slight relief.
He then turned to Melbourne medical
device specialists, Anatomics, who worked with Professor Milan Brandt and his
team at RMIT's Centre for Additive Manufacturing at the Advanced Manufacturing
Precinct to design and develop a custom-made titanium spinal implant using 3D
printing (or additive manufacturing).
"This revolutionary process allows
the implant to be built layer by layer, adding successive layers of material
under computer control - as opposed to the subtractive manufacturing techniques
of casting, fabrication, stamping and machining," Brandt said.
"An advantage of 3D printing is
that a custom implant can be made of any shape and complex internal
architecture for a reasonable cost."
Specialist teams at Anatomics and RMIT
used a CT scan of Gorvin's spine to create the customised implant while a
second medical device supplier, LifeHealthcare provided additional parts. It
has been three months since the surgery and Gorvin has resumed normal
activities without any significant pain.
3D printing is proving to be a game
changer for manufacturing in the aviation, aerospace, automotive and healthcare
industries.
The ability to create unique and
complex titanium implants for specific conditions, such as the abnormal shape
of Gorvin's vertebral cage, indicates that additive technology could be used to
provide ongoing support for patients with chronic pain.
Source: RMIT University
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें