निःश्वास एक बुनियादी जीवन रक्षक प्रक्रिया है
अनुसंधान से सिद्ध हुआ है कि मनुष्यों में एक सामान्य
निःश्वास की पृष्ठभूमि में महज निराशा (डिप्रेशन) ही नहीं है, अपितु
इससे कहीं अधिक और रहस्यमय शारीरिक प्रक्रिया छुपी है। अर्थात, मानव निःश्वास
प्रति घंटे कई बार होने वाली एक अत्यावश्यक शारीरिक प्रक्रिया है, जो फुफ्फुस (लंग्स)
की नैसर्गिक कार्यविधि की रक्षा करती है।
'निःश्वांस मस्तिष्क के निर्देशों की
प्रक्रिया है। वे निर्देश जो कृपिका (अल्वीःलाय) को पुनः फुलाने हेतु होते
हैं। अल्वीःलाय मानव शरीर में प्राण वायु ऑक्सीजन तथा कार्बन
डाइऑक्साइड के आवागमन को नियंत्रित करते है। यह आवागमन यदा कदा धराशायी भी
हो जाता है।'
अमेरिका के वैज्ञानिक
केलिफोर्निया में, निःश्वास का स्रोत खोजने में सफल रहे हैं। मानव मस्तिष्क
में स्थित नियंत्रण केन्द्र, मानव को हर स्थिती में, प्रति घंटे लगभग 10-12 बार
निःश्वास भरने के लिए निर्देशित करता है।
शोधकर्ताओं ने नेचर पत्रिका को
बताया कि केन्द्रीय मस्तिष्क में, जहां सूक्ष्म अवचेतन मस्तिष्क, शरीर की प्राणक्रियाओं
का संचालन सुचारू रूप से करता है, चेतन को जिसका आभास भी नहीं होता। जैसे श्वांस
क्रिया, निद्रा, हृदय स्पंदन आदि। वहीं, तंत्रिका कोशिकाओं के दो सूक्ष्म गुच्छे
होते हैं, जो निःश्वास की लयात्मकता को जन्म देते हैं। यह फुफ्फुस में स्थित अल्वीःलाय
नामक असंख्य सूक्ष्म पोटलियों को पुनः प्राणवायु से भरने की प्रक्रिया है। यह
प्रक्रिया मस्तिष्कीय निर्देश के फलस्वरूप होती है।
"यह प्रक्रिया पेसमेकर
से भिन्न है। एक पेसमेकर, हमारे श्वांस की गति को नियंत्रित करता है। वहीं मस्तिष्क
का श्वांस केन्द्र हमारी श्वांस की गुणवत्ता भी नियंत्रित करता है।" मार्क क्रानोव कहते हैं, जो स्टेनफोर्ड
स्कूल ऑफ मेडिसिन में जैव रसायन शास्त्री तथा लेखक हैं।
"यह कुछ विभिन्न प्रकार की तंत्रिका कोशिकाओं (न्यूरान्स)
से बना है। इनमें से हर एक न्यूरान किसी बटन की तरह काम करता है और एक
विशेष प्रकार की श्वसन क्रिया को आरम्भ करता है। एक बटन सामान्य श्वसन को शुरू
करता है, तो अन्य जम्हाई, सूंघने, खाँसी या हँसी, ठहाका अथवा रोने की क्रिया को
कार्यान्वित करता है।"
यह अनुसंधान जीर्ण फुफ्फुस
रोगियों और घायलों की श्वसन क्रिया की पहेली पर प्रकाश डालता है जिनकी श्वसन
क्रिया खतरे में होती है, (तकनीकी व्यवस्था से सामान्य होने तक)। निःश्वांस एक
विशेष प्राणरक्षक शारीरिक क्रिया है, जो वस्तुतः रिक्त फुफ्फुस की एक अतिरिक्त
श्वांस है। यह नवीन अनुसंधान इस प्रक्रिया की एक परिष्कृत समझ को प्रस्तुत करता है।
यह है इसकी प्रक्रियात्मक सरलता, जो अत्यन्त विस्मयकारक है।
"निःश्वसन मानव व्यवहार की बुनियादी प्रक्रिया से जुड़ी
वह क्रिया है जो संख्यात्मक रूप में निम्नतम न्यूरॉन्स द्वारा संचालित होती
है।" प्रो.जेक फेल्डमेन,
न्यूरोबायोलॉजिस्ट, यूनिवर्सिटी कॉलेज लॉस ऐंजलेस तथा सह लेखक। "मस्तिष्क का मानव व्यवहार पर नियंत्रण, तंत्रिका विज्ञान (न्यूरोसाइंस) के
गूढ़तम रहस्यों में है। हमारा अध्ययन ऐसे तंत्र का विस्तृत अणवेषण है जिसके तल से
और भी क्लिष्ट प्रक्रियाओं के रहस्य सामने आऐंगे।"
इस अनुसंधान में प्रायोगिक
चूहों, मूषकों पर परीक्षण किया गया, जो एक घंटे में लगभग 40 बार निःश्वांस लेते
हैं। उन्होंने मूषकों की मस्तिष्क कोशिकाओं के करीब 19000 स्वरूपों (पैटर्न)
का अध्ययन किया जो अनुवांशिकीय गतिविधियों से जुड़ी थी। वे मूषकों के मस्तिष्क केंद्र में 200 न्यूरॉन्स
की पहचान में सफल रहे। मस्तिष्क में दो पेप्टाइड्स निर्मित होते हैं जो
मस्तिष्कीय संदेशों के संचारण में महत्वपूर्ण हैं। यह उन में से एक, प्रोटीन अवयय
बना रहे थे। मानवों में पेप्टाइड के इस परिवार का कार्य, जैसा कि हम जानते
हैं, श्वसन तथा निःश्वसन में संलिप्तता हैं। मूषकों पर अण्वेषण द्वारा इसे
नियंत्रित करने वाले अनुवांशिकों तथा संवेदी शिराओं की पहचान की गई।
अनुसंधान की भागीदार दो
समितियों ने खोजा कि पेप्टाइड्स ने एक और तंत्रिका-नर्व कोशिका-सेल के सेट को सक्रिय
किया था जो मूषकों की पेशियों को कार्यशील कर, निःश्वास को जन्म देते हैं। वैज्ञानिकों
द्वारा पेप्टाइड के एक सेट को रोकने पर मूषक अर्धगति से निःश्वांस लेते थे,
और दोनों के रोकने पर निःश्वास पूर्णतः रुक जाती। इस स्थिति में, क्योंकि
निःश्वांस का कार्य रिक्त अल्वीःलाय को प्राणवायु से भरना था,
निःश्वांस प्राण रक्षक तंत्र का हिस्सा हो जाती है।
"अगर हर पाँच मिनिट में आप निःश्वांस नहीं लेते, तो अल्वीःलाय धराशाई होकर लंग्स फेलियर में बदल जाती हैं। आयरन लंग्स के रोगी को यही समस्या होती है, क्योंकि वे कभी निःश्वांस लेते ही नहीं।" फेल्डमेन कहते हैं।
"अगर हर पाँच मिनिट में आप निःश्वांस नहीं लेते, तो अल्वीःलाय धराशाई होकर लंग्स फेलियर में बदल जाती हैं। आयरन लंग्स के रोगी को यही समस्या होती है, क्योंकि वे कभी निःश्वांस लेते ही नहीं।" फेल्डमेन कहते हैं।
इस अणवेषणात्मक अनुसंधान में
यह अनुत्तरित ही रहा कि उत्तेजना में, उदासी में तथा हताशा में हम निःश्वांस क्यों
लेते है।
"निश्चित ही निःश्वास का का एक पहलू मानसिक व
मनोविज्ञान से भी संबंधित है। उदाहरणतः तनाव में आप ज्यादा निःश्वांस लेते हैं" फेल्डमेन कहते हैं। "हो सकता है
कि मस्तिष्क के उस विशेष क्षेत्र में, जो भावनाओं को विश्लेषित करता है, न्यूरॉन्स
निःश्वास के जनक न्यूरोपेप्टाइड्स को सक्रिय करता हो। लेकिन हम अभी इस विषय
में नहीं जानते।"
"निश्चित ही निःश्वास का का एक पहलू मानसिक व मनोविज्ञान से भी संबंधित है। उदाहरणतः तनाव में आप ज्यादा निःश्वांस लेते हैं" फेल्डमेन |
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