वर्तमान समय में किडनी खराब होने का सबसे बड़ा कारण अब डायबिटीज़ या मधुमेह है।
जब शरीर में रक्तशर्करा या ग्लूकोज़ का स्तर अधिक बना रहता है तो शरीर में अनेक ऐसे पदार्थ बनते हैं जो धीमे-धीमे किडनी को नुकसान पहुंचाते हैं। डायबिटीज़ के लगभग 40 प्रतिशत मरीजों में किडनी की समस्या हो सकती है। एक समय था जब किडनी पर गंभीर क्षति पहुंचने के बाद ही डायग्नोसिस हो पाता था। वर्तमान समय में किडनी पर डायबिटीज़ के दुष्प्रभावों का प्रारंभिक अवस्था में ही पता लगाया जा सकता है।
वृक्क (किडनी) एक महत्वपूर्ण शारीरिक अँग
इस छलनी के सुचारू कार्य में व्यवधान आने से हमारे प्रत्येक अँग पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। लगातार व्यवधान आने पर किडनी या वृक्क अपनी नैसर्गिक क्षमता खोकर रूग्ण हो जाता है तथा रीनल फेल्योर या निष्क्रियता की स्थिति में पहुँच जाता है जिसे किडनी फेल होना भी कहा जाता है।
कारण
किडनी खराब होने का वर्तमान में सबसे बड़ा कारण डायबिटीज़ या मधुमेह है। जब ग्लूकोज़ या रक्त शर्करा का स्तर सामान्य से अधिक बना रहता है तो शरीर में लगातार ऐसे अनेक पदार्थ बनने लगते हैं जो शनैः-शनैः किडनी को नुकसान पहुंचाते हैं।
डायबिटीज या मधुमेह तथा उच्च रक्तदाब रोगों में वृक्क या गुर्दों को अतिरिक्त मात्रा में रक्त की शुद्धि करना होती है। अतिरिक्त कार्य भार से सूक्ष्म शिराओं के अति सूक्ष्म छेदों में रिसाव होने लगता है जिससे पोषण कण या प्रोटीन भी अपशिष्ट कणों के साथ रक्त प्रवाह से बाहर हो कर मूत्र में मिलने लगते हैं, तथा लगातार यह स्थिति रहने पर किडनी, वृक्क अपनी छनन क्षमता खो देते हैं। फलतः अपशिष्ट पदार्थ शरीर में ही जमा होने लगते हैं। इस स्थिति को किडनी फेल्योर या ESRD ईएसआरडी का नाम दिया गया है। वृक्क की इस स्थिति में डायलिसिस या कृत्रिम रक्त शुद्धि अथवा किडनी प्रत्यारोपण का सहारा लेना पड़ता है।
मधुमेह से किडनी या वृक्क कैसे खराब होता है ?
किडनी में स्थित लाखों सूक्ष्म रक्त शिराओं में अति-सूक्ष्म छेद होते हैं जो रक्त छानने का कार्य करते हैं। रक्त के नैसर्गिक अवयय जैसे लाल व श्वेत रक्त कोशिकाऐं, प्रोटीन्स आदि, इन अति-सूक्ष्म छेदों से बड़े होते हैं, अतः वे रक्त में ही रह जाते हैं। लेकिन विभिन्न हानिकारक शारीरिक अपशिष्ट रसायनिक कण छोटे होने से इन अति-सूक्ष्म छेदों से सहज ही निकल जाते हैं, जो मूत्र के रूप में शरीर से बाहर जाते हैं।
एनीमेशनः(मीशा शूमॉकर) विमियो.कॉम से साभार
किसे होता है यह रोग ?
डायबिटीज अथवा उच्च रक्त दाब के रोग से ग्रस्त सभी रोगियों को किडनी फेल्योर की समस्या नहीं होती। वे घटक जो इसे अधिक संभावित बनाते हैं वे हैं आनुवांशिकी, रक्त शर्करा स्तर तथा रक्त-चाप। जो व्यक्ति अपने रक्तचाप तथा डायबिटीज में रक्त शर्करा को नियंत्रित रखते हैं, ऐसे रोगियों में इसकी संभावना कम हो जाती है।
यदि मूत्र में बहुत अल्प मात्रा में एल्ब्युमिन का रिसाव होने लगे तो इसे माइक्रो एल्ब्युमिन यूरिया कहते हैं। यदि एल्ब्युमिन का यह रिसाव बगैर किसी संक्रमण, बुखार के हो रहा है तो यह किडनी पर डायबिटीज़ से होने वाली हानि का प्रारंभिक लक्षण है।
यदि लगातार परीक्षण में माइक्रो एल्ब्युमिन टेस्ट पॉजिटिव आए तो इसका अर्थ है कि मरीज को अपनी डायबिटीज़ एवं ब्लड प्रेशर की चिकित्सा को अधिक गंभीरता से लेना चाहिए। साथ ही इन रोगियों को ब्लड प्रेशर की दवाएं जो एन्जियोटेन्सिन सिस्टम पर काम करती हैं, चार ग्राम तक नमक का सीमित सेवन एवं आहार में प्रोटीन की मात्रा को भी सीमित करने की जरूरत है।
24 घंटे में 300 माइक्रोग्राम से अधिक एल्ब्युमिन आने पर माइक्रो प्रोटीन यूरिया स्टेज के इसके बाद की स्थिति को कहते हैं। इस स्टेज पर डॉक्टर की सलाह से इन्सुलिन का उपयोग करना चाहिए ताकि रक्त में शर्करा के स्तर को प्रबलता से नियंत्रित किया जा सके। दर्द निवारक दवाइयाँ, अधिक प्रोटीन युक्त आहार, चूर्ण पदार्थ जिनमें हेवी मेटल्स होते हैं, आदि से बचना चाहिए।
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