11/02/17

रक्तार्बुद या ब्लड कैंसर

ब्लड कैंसर यानि एक्यूट माइलॉइड ल्यूकीमिया। 

बेहद तेज और घातक बीमारी

किन्तु यह मृत्यु का सर्टिफिकेट नहीं है। इस पर विजय पाई जा सकती है। रोगी पुनः स्वस्थ जीवन जी सकता है। ब्रिटेन के डॉक्टरों के अनुसार ब्लड कैंसर से पहले रक्त में गड़बड़ी यानी ब्लड डिसऑर्डर होता है। अगर समय रहते रक्त में अनियमितता का पता लगा लिया जाए तो उसे कैंसर में बदलने से रोका जा सकता है।
-परीक्षित निर्भय
क्या है एक्यूट माइलॉइड ल्यूकीमिया ?

यह रक्त एवं बोन मैरो यानी अस्थिमज्जा का एक प्रकार का कैंसर है। दरअसल हमारी हड्डियों के अंदर पाई जाने वाली मज्जा- ब्लड स्टेम सेल या अपरिपक्व कोशिकाएं पैदा करती है। यह कोशिकाएं विकास की प्रक्रिया में अग्रसर होती हुई परिपक्व होती हैं। इन्हीं कोषिकाओं  में से सफेद रक्त कणिका संक्रमण से लड़ती हैं। लाल रक्त कणिका पूरे शरीर में ऑक्सीजन पहुंचाती हैं और प्लेटलेट्स थक्का बनाकर खून को बहने से रोकती हैं, तैयार होती हैं।


यूं बिगड़ती है बीमारी

एक्यूट माइलॉइड ल्यूकीमिया रोग मानव शरीर में ऐसा विकार उत्पन्न करता है कि श्वेत रक्त कणिकाएं परिपक्व होती ही नहीं। वहीं कई लाल रक्त कणिकाएं और प्लेटलेट्स में भी खराबी आने लगती है। अगर समय पर सही इलाज न हो तो यह कर्क रोग या कैंसर तीव्रता से विनाशक दशा में पहुंच जाता है।

कैंसर मतलब मौत नहीं

बीएलके सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल दिल्ली के डॉ. धर्मा चौधरी कहते हैं, दरअसल लोग कैंसर का नाम सुनते ही उसे डेथ सर्टिफिकेट या मृत्यु आदेश मान लेते हैं। पर यह एक मिथक के अलावा कुछ नहीं। इसका पूरी तरह से उपचार संभव है। कुछ बरसों पहले जहां 15 फीसदी रोगियों को ही उपचार से बचाया जा पाता था आज यह आंकड़ा रिस्क फैक्टर के हिसाब से 50 से 70 फीसदी तक पहुंच चुका है। डॉ. चौधरी कहते हैं, हमारे यहां हर महीने 18-20 स्टेम सेल ट्रांसप्लांट होता है।


कीमोथेरेपी के लिए सही प्लानिंग जरूरी 

डॉक्टर्स कहते हैं कि कीमोथेरेपी और स्टेम सेल ट्रांसप्लांट सही प्लानिंग का हिस्सा होता है। दरअसल कीमोथेरेपी की तीन-चार साइकल यानी राउंड होते हैं। पहली कीमोथेरेपी के बाद दूसरी कीमोथेरेपी न देकर स्टेम सेल ट्रांसप्लांट किए जाएं तो बेहतर रिजल्ट मिलते हैं। कीमोथेरेपी के राउंड बढ़ने के साथ यह क्षमता घटती जाती है। विशेषज्ञों के मुताबिक बहुतायत में डॉक्टर ट्रांसप्लांट की एडवाइस नहीं देते। डॉ. चौधरी के मुताबिक इसके पीछे सबसे बड़ी वजह यह होती है कि उनके पास ट्रांसप्लांट की सुविधा नहीं होती।


भारत में ट्रांसप्लांट के महज 35 सेंटर

स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, अब देश के बड़े शहरों में कुल 30-35 केंद्र ही हैं जहां स्टेम सेल ट्रांसप्लांट की सुविधा है। एक्यूट माइलॉइड ल्यूकीमिया में ट्रांसप्लांट में पेशेंट के हिसाब से खर्च अलग-अलग आता है। 10 से 12 लाख रुपये इस पर खर्च हो सकते हैं।

थैलीसीमिया की जांच है जरूरी

राजीव गांधी कैंसर चिकित्सालय एवं अनुसंधान केंद्र नई दिल्ली के ब्लड कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉ. दिनेश भूरानी बताते हैं कि माता और पिता थैलीसीमिया माइनर स्टेज में है तो उन्हें शिशु को जन्म देने से पहले डॉक्टर की सलाह अवश्य लेनी चाहिए, क्योंकि ऐसे माता -पिता की होने वाली संतान मेजर थैलीसीमिया होता या होती है। थैलीसीमिया से पीड़ित ऐसे माता -पिता को डॉक्टर बच्चा पैदा न करने की सलाह देते हैं। इसकी वजह यह है ऐसा बच्चे का जीवन अधिक नहीं होता है। ऐसे बच्चे का बोनमैरो ट्रांसप्लांट भी करना पड़ता है।

बार-बार बुखार आना भी संकेत

डॉ़ भूरानी ने बताया कि यदि किसी व्यक्ति को बार-बार बुखार आ रहा है तो उसे गंभीरता से लें। डॉक्टर के पास जाएं और जांच कराएं, हो सकता है कि वह व्यक्ति ब्लड कैंसर का शिकार हो। बुखार आने के साथ ही शरीर के किसी में हिस्से में गांठ बनना और उससे खून आना भी ब्लड कैंसर के लक्षण हैं।

इस महान क्रिकेटर को हुआ था कैंसर

न्यूजीलैंड के महानतम क्रिकेटरों में शुमार मार्टिन क्रो। सितंबर 2014 में मार्टिन क्रो ब्लड कैंसर लिम्फोमा की चपेट में आए थे। इस बीमारी के चलते मार्टिन क्रो की मौत हो गई थी। मार्टिन क्रो ने 1982 से 1995 के बीच अपने 13 वर्ष के अंतरराष्ट्रीय कैरियर में 77 टेस्ट में 45.36 की औसत से 5444 रन बनाए। इसमें 17 शतक और 50 अर्धशतक शामिल थे। 

ल्यूकेमिया ब्लड कैंसर

ल्यूकेमिया होने पर कैंसर के सेल्स शरीर के रक्त बनाने की प्रक्रिया में दखल देने लगते हैं। ल्यूकेमिया रक्त के साथ-साथ अस्थि मज्जा पर भी हमला करता है। इसकी वजह से रोगी को चक्कर आना, खून की कमी होना, कमजोरी होना और हड्डियों में दर्द होने की समस्या होती है। ल्यूकेमिया होने का पता रक्त की जांच से चलता है जिसमें विशिष्ट प्रकार की रक्त कोशिकाओं को गिना जाता है। ल्यूकेमिया के इलाज के लिए रेडिएशनकीमोथेरेपी का इस्तेमाल किया जाता है। कुछ मामलों में अगर जरूरी हो तो अस्थि मज्जा (बोन मेरो) का प्रत्यारोपण भी किया जा सकता है।


लिंफोमाज ब्लड कैंसर

लिंफोमाज ब्लड कैंसर एक प्रकार के सफेद रक्त कोशिकाओं को प्रभावित कर लिम्फोसाइट्स में होता है। लिंफोमाज ब्लड कैंसर के लक्षण ट्यूमर की जगह व आकार पर निर्भर करते हैं। इसकी शुरुआत गर्दन में, भुजाओं के नीचे व पेट व जांघों के बीच वाले भाग में सूजन से होती है। इसका इलाज रेडिएशनकीमोथेरपी के जरिए किया जाता है।

मल्टीपल मायलोमा ब्लड कैंसर

मल्टीपल मायलोमा ब्लड कैंसर के शिकार ज्यादातर बुजुर्ग लोग होते हैं। इसमें श्वेत रक्त कोशिकाओं का एक प्रकार- प्लाज्मा, प्रभावित होता है। इसके इलाज के लिए रेडिएशन, कीमोथेरेपी व अन्य दवाओं का प्रयोग किया जाता है।

ब्लड कैंसर का निदान 

रक्त परीक्षण
ब्लड कैंसर के निदान के लिए कंप्लीट ब्लड काउंट किया जाता है। इसको सीबीसी भी कहा जाता है। रक्त के नमूने में विभिन्न प्रकार की रक्त कोशिकाएं होती हैं। जब रक्त में कोशिकाओं की संख्या ज्यादा मिलती है या खून में जो भी कोशिकाएं होती हैं वह आकार में बहुत छोटी होती हैं और असामान्य कोशिकाएं पायी जाती हैं तब परीक्षण द्वारा ब्लड कैंसर का पता लगाया जा सकता है।

एक्सरे 
सीने का एक्से-रे करके डॉक्टर यह पता लगा सकते हैं कि कैंसर की कोशिकाएं फेफडों में कहां तक फैल गई हैं। चेस्ट एक्स-रे से लिम्फ नोड्स में रक्त कैंसर के संक्रमण का पता लगाया जाता है। फेफडों में कैंसर की कोशिकाओं के संक्रमण का पता एक्स-रे के जरिए किया जाता है।

लेप्रोस्कोपी
लेप्रोस्कोपी के जरिए ब्लड कैंसर की सर्जरी की जाती है। ब्लड कैंसर के निदान के लिए लेप्रोस्कोपी बहुत ही आसान तरीका है।

ट्यूमर मार्कर टेस्ट
ब्लड कैंसर के निदान के लिए चिकित्सक ट्यूमर मार्कर टेस्ट करते हैं। ट्यूमर मार्कर से शरीर के ऊतकों, रक्त और मूत्र का टेस्ट किया जाता है। जब कैंसर के सेल्स उभरे हुए होते हैं तब इस जांच से रक्त कैंसर का पता लगाया जा सकता है।

यूरीन जांच
ब्लड कैंसर की जांच के लिए मूत्र के सैंपल की जांच की जाती है। माइक्रोस्कोप के जरिए मूत्र से ब्लड कैंसर के सेल्स की जांच की जाती है। मूत्र में एपिथेलियल सेल्स होती हैं जो कि मूत्र के मार्ग पर होती हैं और कैंसर के सेल्स मूत्र के रास्ते से बाहर निकलते हैं जिसको माइक्रोस्कोप के जरिए खोजा जा सकता है। इस जांच को यूरीन सीटोलॉजी टेस्ट कहा जाता है। कैंसर के सेल्स जब ज्यादा खतरनाक हो जाते हैं तब इस परीक्षण से इनकी जांच की जा सकती है।

कैंसर के आठ लक्षण

पेशाब में आने वाले खून
खून की कमी की बीमारी (एनीमिया)
शौच के रास्ते खून आना
खांसी के दौरान खून का आना
स्तन में गांठ
कुछ निगलने में दिक्कत होना
मीनोपॉस के बाद खून आना
प्रोस्टेट के परीक्षण के असामान्य परिणाम

-नवभारत



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