08/11/19

मस्तिष्क क्षय

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मस्तिष्क क्षय

मस्तिष्कावरण शोथ
-लेप्टो मेनिन्जाइटिस
मेनिंन्जाइटिस, मस्तिष्क तथा मेरुरज्जू के आवरण-झिल्ली में शोथ/सूजन का द्योतक है ।
इसके एकाधिक कारण हैं।
फफूँद-फँगस, परजीवी-पेरासाइट या फिर संभवतः कोई चोट।
आमतौर पर यह जीवाणु-बैक्टीरिया संक्रमण के कारण होता है।
बच्चे जीवाणु जनित संक्रमण-बेक्टीरियल मेेनिेन्जाइटिस की चपेट में आसानी से आ जाते हैं।
संक्रमण के लक्षण एक सप्ताह बाद दिखाई देने लगते हैं।
सामान्य लक्षणों में सिरदर्द, मस्तिष्क शूल, ज्वर तथा त्वचा पर लालिमा आदि हैं।
कुछ तरह के शोथ प्राणघातक होने से, किसी भी प्रकार के संदेह, (संक्रमण) पर तुरंत अपने पारिवारिक चिकित्सक की सलाह लीजिए।
मेनिंजाइटिस का संक्रामक होना इसके विभिन्न प्रकारों तथा संक्रमण कारणों पर निर्भर करता है।

फफूँदी जनित मेनिंजाइटिस
क्रिप्टो कोकस नामक फफूँदी अक्सर इसके संक्रमण का कारण है।
दुर्बल प्रतिरोधात्मक शक्ति के कारण  इस दुर्लभ मेनिंजाइटिस संक्रमण से ग्रस्त होते हैं, किन्तु यह अपने आप में संक्रामक नहीं है।

परजीवी जनित मेनिंन्जाइटिस
परजीवी-मस्तिष्कावरण एक अति दुर्लभ तथा प्राणघातक है।
यह एक सूक्ष्म अमीबा, नीग्लॅरिआ फॉव्लेरी, के संक्रमण से होता है।
यह परजीवी नासिका के रास्ते शरीर में प्रवेश करता है, अधिकतर प्रदूषित तालाबों, दूषित नदियों-झील आदि से।यह इन प्रदूषित स्रोतों का जल पीने से नहीं होता और ना ही संक्रामक होता है।

असंक्रामक मस्तिष्कावरण शोथ-मेनिंन्जाइटिस
मेनिंन्जाइटिस सदैव किसी संक्रमण के फलस्वरूप नहीं होता।
यह मस्तिष्क पर चोट या शल्य क्रिया के फलस्वरूप भी हो सकता है। कुछ विशेष औषधियाँ, चर्मक्षय/त्वग्क्षय अथवा कैंसर। असंक्रामक मेनिंन्जाइटिस छूत से फैलने वाला रोग नहीं हैं।

वायरल मेनिंन्जाइटिस-मस्तिष्कशोथ
वायरल मेनिंन्जाइटिस आमतौर पर देखने में आता है, किंतु यह सामान्यत: प्राणघातक नहीं होता।
आँतों से मस्तिष्क तक पहुँचने वाले- एण्टेरोवायरस जो मेनिंन्जाइटिस का कारक है, मानव लार से सीधे संपर्क से फैल सकता है, नासिका श्लेष्मा, तरल व विष्ठा/मल से संक्रमण एक से दूसरे मनुष्य में फैलता है।
यह आसानी से फैल सकता है -खांसने अथवा छींकने से भी।
सीधे तौरपर अथवा अपरोक्ष संपर्क उस व्यक्ति से जो इससे संक्रमित हो आपका संभावित संक्रमण संकट या आशंका बढ़ा देता है।
किन्तु इस वायरस से संक्रमित होने के दौरान, कुछ जटिलताओं के चलते आपके शरीर में मेनिंन्जाइटिस विकसित होने की संभावना नहीं होती।
मच्छर, टिक्स आदि कीटों से अलग-एन्सिफलाइटिस, डेंगू व पीला बुखार-यलो फीवर फैलााने वाले, अर्बोवाइरस जो मेनिंन्जाइटिस का कारण है गरमियों तथा वर्षा ऋतु के उपरान्त संक्रमित करते हैं।

जीवाणु-बेक्टीरिया जनित मेनिंन्जाइटिस
बेक्टीरियल मेनिंन्जाइटिस चिंताजनक रोग है और यह प्राणलेवा भी हो सकता है।
नाइशिरिया मेनिंन्जाइटिडिस अथवा स्ट्रेप्टोकॉकस न्बयूमोनिया, बहुधा इसके कारक होते हैं।
दोनों ही -संक्रामक-कन्टेजियश होते हैं।
मेनिंन्जोकोकल जीवाणु अधिक समय तक शरीर के बाहर नहीं रह सकता, अत:,
किसी अन्य संक्रमित व्यक्ति से अंतरंगता द्वारा, आपके संक्रमित होने की संभावना कम ही होती है।
हालांकि किसी संक्रमित व्यक्ती से दीर्घावधी की अंतरंगता, संक्रमण के हस्तांतरण के अँदेशे को उत्रोत्र बढ़ती ही है।
यह चिंताजनक है- बालवाड़ी केंन्द्र में, पाठशाला-स्कूल में, तथा महाविद्यालयीन छात्रावासों में।

यह जीवाणु निम्न तरीकों से भी फैल कर संक्रमित कर सकता है:
मुख लार-सलाइवा
श्लेष्मा-म्यूकस
चुंबन-किसिंग
खाने के बर्तन साझा करना
कफ युक्त खांसी
छींकना, तथा संक्रमित भोजन।

हममें से कुछ लोगो के गले में व नासिका तरल श्लेष्मा में मेनिंन्जाइटिस जनक जीवाणु  विद्यमान हो सकते हैं, हालांकि इससे स्वयं संक्रमित ना भी हों तो भी अन्य लोगों तक यह संक्रमण फैल सकता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन -डब्ल्यूएचओ के अनुसार इस विषाणु का सुसुप्तावस्था अंतराल/कालक्रम 2 से 10 दिनों का होता है।
मेनिंजोकोकल व्याधि का विशालतम संकेंन्द्रण उपसहारा-अफ्रीका में चिन्हित है।
सीडीसी-व्याधि नियंत्रण केन्द्र के अनुसार चार हजार एक सौ प्रकरण जीवाणु-बेक्टीरियल मेनिंन्जाइटिस के प्रति वर्ष अमेरिका में दर्ज-नोदित किए जाते हैं।

इसकी आशंका से,
संक्रमण तथा संक्रामक वाह्यक बनने के बचाव में,
निम्न उपाय कर, सावधान रह सकते है।

गुनगुने पानी व साबुन से अपने हाथों को भलीभाँती स्वच्छ रखें।
नाखूनों के नीचे अच्छे से साफ कर पानी से धोऐं व सुखाऐं।
अपने हाथों को भोजन से पहले, शौच के उपरान्त, डायपर बदलने के पश्चात
अथवा किसी रोगी की सुश्रुशा के बाद भलीभाँती साफ करें।

भोजन के बरतन, स्ट्रॉस, प्लेट्स इत्यादि।
छींकते अथवा खाँसते समय हाथों से मुख को ढ़ँक लें।
टीकों-व प्रतिरोधक कार्यक्रम का पालन करें।
अपने चिकित्सक-डॉक्टर से यात्रा से पूर्व परामर्श अवश्य करें।
मेनिंन्जाइटिस की आशंका वाले क्षेत्रों/देशों की यात्रा के पूर्व
व पश्चात, लक्षणों के विषय में अपने चिकित्सक को तुरंत अवगत कराऐं।

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